कई साल पहले इज़रायल से मंगाये गये जैतून के पेड़ों से अब लाभ दे रहे हैं | अब इन बीजों से तेल निकालने के लिए सरकारी रिफायनरी बीकानेर जिले मे काम कर रही है | बाजार में जैतून का तेल महंगा है| इस तेल की मांग लगातार बढ़ रही है |
पिछले कुछ वर्षों में जैतून, कैर-सांगरी, एलोविरा और आंवले आदि के उत्पादन ने राजस्थान सहित देशभर के किसानों को वैश्विक मंच प्रदान किया है।
राजस्थान में कम बारिश, गर्मी के दौरान चिलचिलाती धूप और सर्दी के दौरान भयंकर ठंड से इस क्षेत्र में पारंपरिक खेती करना घाटे का सौदा रहा है, पर किसानों ने इन्हीं चुनौतियों को अवसर में बदल दिया है। किसान अब कमर्शियल क्रॉप्स की खेती कर रहे हैं जिससे प्रति हेक्टेयर लाखों की कमाई हो रही है।
स्पेन, इटली, फ्रांस के साथ सीरिया, ईरान, ईराक में पैदा होने वाला जैतून (ऑलिव) अब मरूधरा की भूमि में लहरहा रहा है। 2008 में इजरायल से 1 लाख 12 हजार पौधे राजस्थान सरकार ने आयात किए थे। वर्तमान में लगभग 186 हेक्टेयर सरकारी जमीन और करीब 500 हेक्टेयर निजी जमीन पर किसान जैतून की खेती कर रहे हैं।
इस पेड़ की उम्र 700 से 800 साल तक की होती है। एक पौधे से दूसरे पौधे के बीच की दूरी 4 मीटर और एक कतार से दूसरी कतार के बीच 7 मीटर की दूरी रखें। जैतून के पौधे की 48 से 50 डिग्री से लेकर माइनस 7 डिग्री तक तापमान सहने की क्षमता होती है। वैसे सर्दी में इसे 300 घंटे तक 10 डिग्री के आसपास का तापमान चाहिए।
जैतून की सबसे अधिक खेती राजस्थान में होती है। शायद यही वजह है कि जैतून का तेल निकालने के लिए देश की सबसे पहली रिफाइनरी राजस्थान के बीकानेर जिले के लूणकरणसर में लगाई गई है।
राजस्थान सरकार ने इजरायल से जैतून की सात किस्में इम्पोर्ट की है, जिनमें से पांच की राजस्थान में बहुत ही शानदार पैदावार हो रही है। राजस्थान सरकार के 182 हेक्टेयर में जैतून के फार्म लगे हुए हैं। इसके अलावा राजस्थान में किसानों द्वारा भी एक हजार हेक्टेयर में जैतून की खेती की जा रही है।
जैतून खेती से जुड़े अधिकारियों के अनुसार जैतून के पेड़ लगाने के पांच साल के बाद फल देना शुरू कर देते हैं। इन पांच सालों में इनकी दो से तीन बार कटाई की जाती है, जिससे इनकी ग्रोथ रेट बढ़ती है. जैतून का तैल (ऑलिव ऑयल) खाने और कॉस्मेटिक प्रोडक्ट में काम लिए जाते हैं। इसके साथ ही इनकी टहनियों में भी तेल की मात्रा होती है, जो कटाई के बाद जलाने के काम आती है। वहीं जानकारों का कहना है कि इसकी पत्तियों को सुखाकर चाय भी बनाई जाती है, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक होती है।
इस समय नागौर, श्रीगंगानगर, अलवर, बीकानेर जिले की 282 हेक्टेयर भूमि पर जैतून की खेती हो रही है, जिसे बढ़ाकर अब पांच हजार हेक्टेयर करने का लक्ष्य है। जैतून के फल रिफाइनरी में भेजे जाएंगे, जहां तेल निकाला जाएगा।