बैंगन की फसल में विभिन्न प्रकार के कीट व रोग भारी नुकसान पहुंचाते हैं। इससे जहां फसल की गुणवत्ता पर असर पड़ता है, वहीं फसल पैदावार भी प्रभावित होती है। कीट व रोगों की समय रहते रोकथाम कर ली जाए तो अच्छी पैदावार ली जा सकती है।
प्रमुख कीट व उनकी रोकथाम
हरा तेला : हरे रंग के शिशु व प्रौढ़ कोमल पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं। पत्तियां पीली व कमजोर होकर गिरने लगती हैं। प्रकोप दिखाई देते ही 300-400 मि.ली.मैलाथियान 50 ई.सी. को 250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से 15 दिन के अंतर पर छिड़काव करें। फसल शुरू होने पर बारी-बारी से 80 मि.ली.फैनवलरेट 20 ई.सी. या 70 मि.ली. साइपरमेथ्रिन 25 ई.सी. तथा 500 ग्राम कार्बोरिल 50 डब्ल्यूपी का रोपाई के 35-40 दिन बाद 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
सफेद मक्खी: सफेद-मटमैले रंग की अंडे के आकार की छोटी मक्खी के शिशु व प्रौढ़ पत्तियों का रस चूसकर नुकसान पहुंचाते हैं। यह मक्खी विषाणु रोग भी फैलाती है।
हड्डा भुंडी: यह भुंडी अर्धवृत आकार में तांबे जैसे रंग की होती है, जो पत्तियों का हरा पदार्थ खा जाती है। पत्तियां सूखकर गिर जाती हैं।
तना व फल छेदक सुंडी: गुलाबी रंग की सुस्त सुंडी है। फल खाने से पहले यह कोपलों में छेद करके अंदर पनपती रहती है, फिर फलों के अंदर जाकर उनको काना कर देती है।
लाल अष्ट पदी मकड़ी: प्रौढ़ व शिशु पत्तियों का रस चूस लेते हैं तथा पत्तियां मुड़ जाती हैं। अधिक प्रकोप से पत्तियां लाल होकर गिर जाती हैं और इन पर जाला सा बना जाता है।
रोकथाम: इन चारों कीटों की रोकथाम के लिए 400 मि.ली.मैलाथियान 50 ई.सी. को 200-250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ 15 दिन के अंतर पर छिड़काव करें। फल छेदक सुंडी के प्रकोप से मुरझाई कोपलों को काटकर जमीन में दबा दें।
बैंगन में कई रोग भी नुकसान पहुंचाते हैं। फल गलन की रोकथाम के लिए प्रति किलो बीज का उपचार ढाई ग्राम थीराम या कैप्टान से करें। फल लगने के बाद 400 ग्राम इंडोफिल एम-45 दवा 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें। जड़ गांठ रोग की रोकथाम के लिए नर्सरी में कार्बोफ्यूरान 3 जी सात ग्राम प्रति वर्ग मी. के हिसाब से भूमि में मिलाएं। छोटी पत्ती या मोजेक रोग की रोकथाम के लिए रोपाई से पहले पौध की जड़ों को आधे घंटे तक टेट्रासाइक्लिन के घोल में डुबोएं।