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जलवायु परिवर्तन : मौसम की चपेट में आए तरबूज-किसान

अरविंद शुक्ला

शिवम सिंह ने पिछले साल करीब सवा दो एकड़ खेत से करीब 400 कुंतल (क्विंटल) तरबूज बेचे थे, जबकि इस बार 150 कुंटल तक पहुंचना मुश्किल है। शिवम कहते हैं, मुझे नहीं पता मौसम में गर्मी के चलते कम उत्पादन हुआ या बीज घटिया था, बस इतना पता है कि पिछले साल की अपेक्षा 30 फीसदी उत्पादन है। ऐसे में मुनाफा तो दूर लागत निकालनी मुश्किल है।

शिवम सिंह (26 वर्ष) उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के टांड़पुर गांव में रहते हैं। बातचीत में वह बताते हैं, “पिछले साल औसतन हर पौधे में 4-5 फल आए थे, इस बार मुश्किल से 1-2 फल आए। फल का वजन भी उतना नहीं बढा। 12 बीघे में हमारा कुल खर्च करीब डेढ़ लाख रहा होगा। पिछले साल हमने इतने ही खेत से 13 गाड़ी (प्रति गाड़ी 30-34 कुंटल तरबूज) बेचा था, इस बार 3 गाड़ी में ही खेत खाली हो गया है। लागत मुश्किल से निकलेगी।” शिवम ने ये सवा दो एकड़ खेत 60 हजार रुपए सालाना पर ठेके में लिया है।

तरबूज की फसल से नुकसान उठाने वाले शिवम अकेले किसान नहीं है। यूपी के बाराबंकी समेत देश के कई राज्यों के किसान परेशान हैं। टांड़पुर से करीब 900 किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश के हरदा जिले में चारखेडा गांव के प्रगतिशील किसान राजेश गैंधर इसके लिए मौसम को जिम्मेदार बताते हैं।

2 एकड तरबूज के किसान गैंधर डाउन टू अर्थ को फोन पर बताते हैं, “जो तापमान अप्रैल में होना चाहिए था, वो मार्च में ही हो गया, उससे दिक्कत हुई है। एक तो फ्रूटिंग (फलत) कम हुई और दूसरे जो फल आए उसमें साइज (आकार और वजन) नहीं आया। मेरी फसल में देरी है लेकिन मेरे कई जानकार किसानों की फसल निकल रही है उनमें पैदावार काफी कम रही है।”

क्या इस उत्पादन के पीछे की वजह मौसम है? शायद हां। इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ एग्रीकल्चर मेट्रोलॉजी के प्रेसीडेंट और भारत मौसम विभाग के पूर्व उप महानिदेशक मेट्रोलॉजी, कृषि मेट्रोलॉजी संभाग पुणे, डॉ. एन चट्टोपाध्याय ज्यादा गर्मी और मिट्टी में कम नमी को अहम कारण मानते हैं।

“इस बार का मौसम दूसरे साल के मौसम से बिल्कुल अलग है। इस साल अभी तक बारिश बहुत कम है और गर्मी की लहर ज्यादा है। मिट्टी में नमी काफी कम है। अगर मिट्टी में नमी की मात्रा कम होती है तो पोषक तत्व जमीन से पौधे को कम मिल पाते हैं। जिसका असर उत्पादन पर पडता है। ज्यादा गर्म होने पर फ्रूटिंग की दिक्कत तो होती ही और दूसरा उसमें जूस (रस) भी कम होगा। ” डॉ. चट्टोपाध्याय कहते हैं। डॉ चट्टोपाध्याय इन दिनों कोलकाता में हैं।

Pile of melons in stall with one cut for viewing.

बदल रही मौसमी परिस्थितियों से फसलों पर पड रहे असर के बारे में बात करते हुए डॉ. चट्टोपाध्याय आगे बताते हैं, “इस साल प्री मॉनसून एक्टिविटी कम हैं। आप देखिए अभी तक आंधी तूफान कितने कम हैं। अगर ये होते हैं तो पहला फायदा होता कि जमीन में थोड़ी नमी आ जाती है, कभी कभी गर्मी की लहर भी कम हो जाती है। ये सिर्फ तरबूज ही नहीं बाकी दूसरी फसल पर असर डालता है। मौसम में बदलाव के चलते गर्म दिनों की संख्या बढती जा रही है और ठंडी रातों की संख्या कम होती जा रही है। ये गर्मी और सर्दी का अंतर से उत्पादन पर होने वाला असर अनाज, फल-सब्जी सभी पर दिखेगा।”

डॉ चट्टोपाध्याय के मुताबिक जिन किसानों के पास सिंचाई का प्रबंध था या जो लगातार सिंचाई करते रहे उनपर असर कम होगा। लेकिन बाकी जगह फूट्रिंग और उत्पादन दोनों में असर आ सकता है।

किसान और कृषि वैज्ञानिक की बातों और आशंकाओं पर सरकारी आंकड़े भी मुहर लगाते नजर आते हैं। देशभर में तरबूज ही नहीं बल्कि दूसरी कई बागवानी फसलों के उत्पादन में कमी आने का अनुमान है।

कृषि मंत्रालय के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा 28 मार्च 2022 को जारी आंकड़ों के अनुसार साल 2020-21 के मुकाबले साल 2021-22 में पूरे देश में बागवानी फसलों का रकबा तो बढ़ा है लेकिन उत्पादन में गिरावट देखी जा रही है। साल 2020-21 के अंतिम और 2021-22 के पहले अग्रिम अनुमान के मुताबिक मौजूदा फसल वर्ष में देश में कुल बागवानी (सब्जी-फल) का रकबा 27.56 मिलियन हेक्टेयर और उत्पादन 333.25 मिलियन टन अनुमानित है जबकि 2020-21 में 27.48 मिलियन हेक्टेयर में 334.60 मिलियन टन उत्पादन हुआ था।

अगर बात तरबूज की करें तो देशभर में 2021-22 में 120 हजार हेक्टेयर खेती हुई, जिससे 3225 हजार मीट्रिक टन उत्पादन का अनुमान है जबकि पिछले वर्ष (2020-21) कोविड-19 की मुश्किल स्थितियों के बावजूद 119 हजार हेक्टेयर में 3254 हजार मीट्रिक टन का उत्पादन हुआ था। यानि तरबूज की खेती बढ़ी लेकिन उत्पादन कम होता नजर आ रहा है।

उत्तर प्रदेश के ज्यादातर जिलों में किसान के खेत पर इन दिनों सरस्वती किस्म के सबसे प्रीमियम समझे जाने वाले तरबूज का भाव 7-9 रुपए प्रति किलो है, जबकि मंडी में 13-15 का भाव हैं। वहीं महाराष्ट्र के नाशिक जिले में 25 अप्रैल को काले छिलके वाले (सागर किंग आदि) का रेट 6 रुपए लगाया गया।

बाराबंकी में टांड़पुर गांव के किसान शैलेंद्र शुक्ला के पास 4 एकड तरबूज है। जो उन्होंने शिवम सिंह की तरह 70000 रुपए प्रति किलो का बीज लेकर बोया था।

शैलेंद्र कहते हैं, “जनवरी-फरवरी में इतनी सर्दी थी कि लग रहा था कहीं ऐसा न हो तो जमे (अंकुरण) नहीं। 70000 रुपए किलो का बीज है। हम लोग बीज इसलिए महंगा लेते हैं क्योंकि इसमें उत्पादन अच्छा होता था। लेकिन इस बार सब कुछ फेल हो गया है। आप समझ लो कि हमने मार्च से लेकर अब तक रात में 5-6 घंटे और सुबह 4-5 घंटे रोज इंजन (डीजल पंपिंग सेट) चलाया है। जितना खर्च हमारा डीजल और बीज में हुआ है, उतना तो उत्पादन नहीं होगा।”

पिछले कई वर्षों से तरबूज की खेती करने वाले किसानों के मुताबिक वो ऐसे समय पर तरबूज की बुवाई या रोपाई करते थे कि रमजान के दौरान फसल तैयार हो जाए। उस दौरान अच्छी मांग के चलते रेट अच्छा मिल जाता है। इस बार अप्रैल की शुरुआत में जब रोजे शुरु हुए तो यूपी के किसानों का तरबूज तैयार नहीं था, ऐसे में 22-23 रुपए किलो की मंडी खुलने के बावजूद स्थानीय किसानों को फायदा नहीं मिला। जब फसल तैयार हुई है तो रेट 15 रुपए से नीचे आ चुका था। जबकि किसान के खेत पर 7-9 रुपए किलो का भाव है, जिसमें 3-4 किलो प्रति कुंटल पर कर्दा (लागत) लिया जाता है। यानि हर कुंटल पर करीब 4 किलो तरबूज का पैसा नहीं मिलता है। इहीं वजहों के चलते बहुत सारे किसानों ने अगली बार तरबूज न बोने का फैसला तक कर लिया है।

By -डाउन टू अर्थ से

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