हिमाचल में सेब की फसलों पर आए दिन प्राकृतिक मार पड़ने और मुनाफा घटने के कारण किसान वैकल्पिक फसल के रूप में चेरी की बागवानी कर रहे हैं। इस पहाड़ी राज्य के सेब के बगीचों में पिछले कुछ सालों से चेरी की भी बड़ी पैदावार होने लगी है।
दरअसल, सेब की फसल लेने में बागवानों को सालभर कमरतोड़ मेहनत करनी पड़ती है। इस पर भी सेब की फसल तभी अच्छी मिलेगी जब मौसम बागवानों का पूरा साथ देगा। मौसम की जरा सी अंगड़ाई से सेब का उत्पादन घाटे का सौदा बन जाता है और बागवानों के लिए सेब बगीचों का खर्चा भी निकालना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में कम मेहनत वाली चेरी की फसल बागवानों के लिए वरदान साबित हो रही है। दूसरे, सेब का सीजन आने से पहले ही चेरी की फसल मंडियों में बेच दी जाती है।
हिमाचल प्रदेश में करीब 400 हेक्टेयर भूमि में चेरी का उत्पादन किया जाता है। राज्य में सेब बगीचों के साथ ही चेरी के पौधे भी लगाए जाते हैं लेकिन चेरी 15 मार्च के बाद तैयार होती है और सिर्फ एक माह तक चेरी का सीजन चलता है।
हिमाचल में चेरी की प्रमुख किस्में रेड हार्ट, ब्लैक हार्ट, विंग, वैन, स्टैना, नेपोलियन, ब्लैक रिपब्लिकन हैं। स्टैना परागण किस्म है और इसके बिना चेरी की अच्छी पैदावार नहीं ली जा सकती। चेरी के अच्छे रूट स्टॉक नहीं हैं। अगर चेरी के रूट स्टॉक अच्छे हों तो फसल और बेहतर हो सकती है।
बागवानों को सिर्फ इस बात का ध्यान रखना होता है कि जब बगीचों में नमी अच्छी है तो चेरी के पौधे और चेरी की परागण किस्में भी लगाएं। पौधों पर सूखे की मार न पड़े। चेरी के पौधे को सबसे ज्यादा खतरा चेरी-बोर से होती है। यह कीड़ा चेरी के पौधों को तबाह कर देता है।
हिमाचल प्रदेश में इस साल चेरी का उत्पादन 25 मीट्रिक टन बढ़ने के आसार हैं। मौसम अनुकूल रहा तो शिमला, कुल्लू, मंडी, चंबा, किन्नौर और लाहौल-स्पीति जिलों में इस बार अच्छी पैदावार होगी।
हिमाचल प्रदेश मार्केटिंग बोर्ड के प्रबंध निदेशक नरेश ठाकुर के अनुसार पिछले साल 350 मीट्रिक टन चेरी मंडियों में बिकी थी। इस बार बारिश होती है तो चेरी का उत्पादन 375 मीट्रिक टन तक होगा।