भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद पूर्वी प्रक्षेत्र पलांडू के निदेशक अरुण कुमार सिंह ने बताया कि आईसीएआर पटना के वैज्ञानिक संतोष कुमार के सहयोग से झारखंड के किसानों के लिए यहां की जलवायु परिस्थितियों को देखते हुए तीन नए किस्म के धान की प्रजाति विकसित की गयी हैं, जो कम पानी में भी बेहद अच्छी पैदावार देगी|
अरुण कुमार सिंह ने कहा कि इसके अलावा केंद्र के आईसीएआर पलांडू के वैज्ञानिकों ने सब्जी और फल के भी नए प्रभेद विकसित किए हैं| इनमें टमाटर, मिर्च, लीची और बेल शामिल हैं|
उन्होंने कहा कि झारखंड के किसान सिर्फ धान की खेती पर ही निर्भर नहीं रहें| धान की खेती के अलावा सब्जी और फलों की खेती से भी अच्छा मुनाफा होता है| जिससे किसान कमाई कर सकते हैं, उनकी कमाई दोगुनी हो सकती है, झारखंड मे फल और सब्जी के लिए काफी बेहतर वातावरण है| यहां पर इनकी पैदावार काफी अच्छी होती है|
धान की नई प्रजाति विकसित करने वाले दल में शामिल आईसीएआर की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ भावना ने बताया कि झारखंड के मौसम के लिए उपयोगी तीन अलग अलग प्रकार के धान के बीज विकसित किए गए हैं| इनमें से स्वर्ण सूखा धान सूखे जैसे हालात के लिए विकसित किया गया है| इस धान के लिए सिंचाई की व्यवस्था नहीं भी होने पर बेहतर उत्पादन होना है| इसके अलावा अन्य दो धान हल्की सिंचाई व्यवस्था होने पर किसान लगा सकते हैं|
सभी धान की इस प्रजाति में पौष्टिकता पहले से अधिक मात्रा में और उत्पादन भी सामान्य धान की तरह ही होता है| जो किसान भाई धान की इस प्रजाति की खेती करना चाहते हैं वो आईसीएआर पलांडू आकर धान खरीद खरीद सकते हैं| सभी प्रजाति रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली है|
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों का कहना है कि समय पर अच्छी बरिश न भी हो तो किसानों को परेशान होने की जरूरत नहीं है। किसान अगर सतर्कता से काम लें तो वह सूखे की स्थिति से निपट सकते हैं। दरअसल धान की कई ऐसी किस्में हैं जो न सिर्फ कम समय में पैदावार देती हैं, बल्कि इनको सिंचाई की भी काफी कम आवश्यकता होती है।
ये भी पढ़ें : किसान धान की पौध तैयार करते समय रखें इन बातों का खास ध्यान कृषि वैज्ञानिकों का सुझाव है कि यदि सूखे जैसे हालात पैदा होते हों तो इन किस्मों का उपयोग किया जा सकता है। यदि जुलाई माह में भी पर्याप्त बारिश नहीं होती है तो भी धान की कई ऐसी किस्में हैं जिनकी पौध जुलाई में तैयार करके अगस्त में रोपाई की जा सकती है। धान की इन किस्मों में पूसा सुगंध-5, पूसा बासमती-1121, पूसा-1612, पूसा बासमती-1509, पूसा-1610 आदि शामिल हैं। धान की यह प्रजातियाँ लगभग चार माह में पैदावार दे देती हैं।
वैज्ञानिकों ने स्पष्ट किया कि किसान विकल्प के तौर पर एक और प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। इस प्रौद्योगिकी के अनुसार धान की बुवाई गेहूँ की तरह खेतों में की जा सकती है। पौध तैयार करने की जरूरत नहीं है। कम बरसात वाले क्षेत्रों में सरसों की पैदावार लेना भी एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है। इसकी फसल को अगस्त और सितम्बर के दौरान लगाकर कम बारिश और सिंचाई की सुविधाओं की कमी के बावजूद अच्छी पैदावार की जा सकती है।
जहाँ सिंचाई सुविधाओं का अभाव है और बरसात भी कम होती हो वहाँ ड्रिप सिंचाई, फव्वारा सिंचाई, पॉली हाउस तथा नेट हाउस जैसी आधुनिक सिंचाई तकनीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है। इन आधुनिक तकनीकों का प्रयोग कर कम सिंचाई के बावजूद अच्छी फसलें तैयार की जा सकती हैं। इन तकनीकों के इस्तेमाल के लिये सरकारें भी अनुदान देकर प्रोत्साहित करती हैं।