आबोहवा और नदियों की जिंदगी बचाने के लिए अब हर राज्य में प्राकृतिक खेती पर जोर दिया जा रहा है| हर सूबे के बजट में इसके लिए बडी रकम मुहैया कराई गई है| मध्य प्रदेश भी इससे अछूता नहीं है| यह माना जाता है कि किसान कीटनाशकों और रासायनिक खादों पर बड़ी रकम खर्च करता है|
आंध्र प्रदेश में सबसे ज्यादा प्राकृतिक खेती हो रही है|
केंद्र सरकार ने इस साल अपने बजट में प्राकृतिक खेती को विशेष स्थान दिया है| मध्य प्रदेश में इसे लेकर बड़ी तैयारी शुरू की गई है| इसके तहत 3 जिलों खरगौन, बड़वानी और खंडवा की 7 तहसीलों में नर्मदा किनारे के 10 किलोमीटर इलाके में करीब 2 लाख हेक्टेयर पर प्राकृतिक खेती की जाएगी|
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन सभी मंत्रियों को प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी दी है, जिनका मुख्य व्यवसाय कृषि है| उन्होंने मंत्रियों को निर्देश दिए हैं कि वह अपने खेतों को प्राकृतिक खेती को मॉडल फार्म के तौर पर तैयार करें| जिससे स्थानीय लोग वहां आकर प्राकृतिक खेती देखकर सीख सकें| प्राकृतिक खेती से मिट्टी का स्वास्थ्य अच्छा रहता है| इसके लिए देसी गाय का गोबर और और गोमूत्र खास है|
इसमें सबसे ज्यादा रकबा खरगोन जिले में होगा, जो करीब 1.5 लाख हेक्टेयर का है| खरगौन के कृषि विभाग के अफसरों मुताबिक उम्मीद है इन जिलों में सालाना करीब 284 करोड़ों रुपए बचाए जा सकेंगे|
आंध्र प्रदेश में सबसे ज्यादा प्राकृतिक खेती हो रही है| जहां एक लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र इसके दायरे में आ चुका है| यहां पर लगभग सवा पांच लाख किसान ऐसी खेती कर रहे हैं| इसी तरह मध्य प्रदेश में 99000 हेक्टेयर, छत्तीसगढ़ में 85000 हेक्टेयर, केरल में 84000 हेक्टेयर में प्राकृतिक खेती हो रही है. उधर, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश एवं तमिलनाडु आदि में भी इस पर जोर दिया जा रहा है|
मध्य प्रदेश में वर्ष 2011 में ही जैविक कृषि नीति तैयार की गयी थी और उस पर कार्य शुरू कर दिया गया था| मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा शुरू की गई इस पहल के कारण मध्य प्रदेश जैविक कृषि लागू करने वाला देश का पहला राज्य है|इसके साथ ही प्रदेश में सबसे अधिक क्षेत्रफल में प्रमाणित जैविक खेती की जाती है| इस मामले में भी मध्य प्रदेश देश में पहला स्थान रखता है| इसका फायदा यहां के किसानों को मिल रहा है|
नर्मदा तटों पर बड़े फलदार, मसालों के या फिर फूलों के पेड़ लगाए जाने से नर्मदा नदी के किनारे मिट्टी का कटाव थमेगा। परंपरागत खेती नहीं होने से मिट्टी को को उर्वर करने में मदद मिलेगी। तटों पर जहां-जहां गौवंश का पालन किया जाएगा, वहां-वहां गोबर और गौमूत्र से भूमि में औषधीय तत्वों की मात्रा बढ़ेगी। गोबर से जैविक खाद का भी निर्माण हो सकेगा।