बाजार रंग-बिरंगे गुलालों से सज गया है। ऐसा ही खास गुलाल बिहार के गया में बनता है। ये प्राकृतिक और सुगंधित गुलाल देश ही नहीं विदेश तक जाना जाता है। हरी सब्जियों और फूलों से जीविका की दीदियां गुलाल बनाने में जुटी हुई है। इस गुलाल की डिमांड देश के कई राज्यों से बड़े पैमाने पर होती है। इसकी धमक अमेरिका तक हे।
ढुंगेश्वरी में जीविका की मुन्नी देवी, राधा देवी समेत कई महिलाएं प्राकृतिक गुलाल बनाने में जुटी हुई है। यह हर्बल गुलाल इनके द्वारा साल 2021 से तैयार किया जा रहा है। प्रतिदिन हजारों पैकेट प्राकृतिक गुलाल बनाए जा रहे हैं। पिछले एक महीने से ही गुलाल बनाने का काम शुरू कर दिया जाता है। इसकी बिक्री अंतर्राष्ट्रीय स्थली बोधगया के अलावे बौद्धों के प्रसिद्ध स्थल ढुंंगेश्वरी और गया के मार्केट में इन महिलाओं के द्वारा खुद की जाती है। ढुंगेश्वरी एक प्रसिद्ध स्थल है। ऐसे में यहां काफी संख्या में विदेशी पहुंचते हैं और इस प्राकृतिक गुलाल को वह काफी पसंद करते हैं।
द मुन्नी देवी के अनुसार पालक का साग, सीम, परास, गेंदा के फूलों से बनने वाले इस प्राकृतिक गुलाल में कोई केमिकल का मिश्रण नहीं होता है। ऐसे में इस गुलाल को जितना भी लगाया जाए, उसका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है. स्किन पूरी तरह से सुरक्षित रहती है। यही वजह है कि आज जहां बाजारों में बड़े तादाद में केमिकल युक्त गुलाल उपलब्ध हैं, तो इसके बीच इस हर्बल गुलाल की मार्केट में डिमांड बढ़ गई है।
मुन्नी देवी, जीविका और प्रेरणा संस्था से जुड़ी महिला है। वह बताती हैं -होली में बड़ा रोजगार मिलता है। प्राकृतिक गुलाल देश ही नहीं विदेशों तक जाता है। वर्ष 2021 से प्राकृतिक गुलाल हम लोग बना रहे हैं। इस सीजन में हमें काम से फुर्सत नहीं मिलती है और अच्छी कमाई हो जाती है। वहीं खुशी होती है कि लोगों के बीच बिना केमिकल का गुलाल जाता है। इस हर्बल गुलाल से त्वचा को किसी प्रकार का नुकसान नहीं होता। ये काफी सुगंधित होता है और पूरी तरह से यह प्राकृतिक रूप से तैयार किया जाता है।”
हर्बल गुलाल बनाने में राजस्थान में उदयपुर भीगी सक्रिय हैं। उदयपुर वन विभाग की पहल से आदिवासी अंचल की महिलाओं और ग्रामीणों द्वारा तैयार की गई इको-फ्रेंडली हर्बल गुलाल राजस्थान ही नहीं, बल्कि देश के कई बड़े शहरों में अपनी महक बिखेरने को तैयार है। वन विभाग से जुड़ी सुरक्षा समितियों के मार्गदर्शन में आदिवासी अंचल की महिलाएं और ग्रामीण पूरी तरह प्राकृतिक संसाधनों से हर्बल गुलाल तैयार कर रहे हैं।
यह गुलाल अरारोट के आटे और प्राकृतिक फूलों से बनाई जाती है, जिससे इसमें एक खास भीनी महक होती है, जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। इस पहल से ग्रामीणों को न केवल स्थानीय स्तर पर रोजगार मिल रहा है, बल्कि उनके द्वारा तैयार गुलाल देश के कई हिस्सों तक पहुंच रही है।
इस हर्बल गुलाल को बनाने की प्रक्रिया पूरी तरह प्राकृतिक है। ग्रामीण जंगलों में जाकर गुलाब, कचनार, पलाश, अमलताश और ढाक के फूलों के साथ विभिन्न प्रकार की सूखी पत्तियां एकत्र करते हैं। इसके बाद इन फूलों को सुखाकर देशी चूल्हों पर अलग-अलग उबाला जाता है, जिससे इनमें मौजूद प्राकृतिक रंग और रस निकल आता है। बाद में इस रस को आरारोट के आटे में मिलाकर शुद्ध हर्बल गुलाल तैयार की जाती है। इस प्रक्रिया में किसी प्रकार के आर्टिफिशियल केमिकल्स का उपयोग नहीं किया जाता, जिससे यह पूरी तरह प्राकृतिक और पर्यावरण के अनुकूल होती है।
राजस्थान वन विभाग की यह पहल न केवल होली के त्योहार को पर्यावरण-संवेदनशील बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि इससे आदिवासी अंचल के कई गांवों में रोजगार के अवसर भी पैदा हुए हैं। झाड़ोली, खोखियार की नाल, कोडियात और केवड़े की नाल जैसे इलाकों में ग्रामीण हर्बल गुलाल बनाने में जुटे हैं, जिससे उनकी आय का एक स्थायी साधन बन रहा है। खास बात यह है कि उदयपुर के अलावा राजस्थान और अन्य चार राज्यों में भी इस गुलाल की जबरदस्त मांग देखने को मिल रहे हैं।
इस साल मेवाड़ की हर्बल गुलाल की खुशबू राजस्थान की सीमाओं को पार करते हुए दिल्ली, बेंगलुरु और अहमदाबाद तक पहुंच रही है। बढ़ती जागरूकता और लोगों का केमिकल-फ्री उत्पादों की ओर रुझान इस हर्बल गुलाल की मांग को और भी बढ़ा रहा है। वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, आने वाले वर्षों में इस पहल को और भी विस्तार देने की योजना है, जिससे अधिक से अधिक ग्रामीणों को इसका लाभ मिल सके।