जलवायु परिवर्तन का असर हिमाचल प्रदेश के सेब उत्पादकों पर ही नहीं, उत्तराखंड की खेती और बागवानी पर भी पड़ रहा है। उत्पादन घट जाने से धामी – सरकार की चिंता बढ़ी है। अब सरकार ने अगले दशक तक इस क्षेत्र में जलवायु अनुकूल उत्पादन बढ़ाने की रूपरेखा तैयार की है।
एक जानकारी अनुसार उत्तराखंड में पिछले सात सालों में फलों का उत्पादन क्षेत्र घटने से पैदावार 44 प्रतिशत तक कम हो गई है। जिसके चलते नाशपाती, खुबानी और आलूबुखारा जैसे फलों का उत्पादन 60% तक घट गया है। सरकार इस संकट से निपटने के लिए अगले 8 साल को लेकर रोडमैप बना रही है, जिसमें किसानों को सब्सिडी दी जाएगी।
उत्तराखंड में प्रमुख फलों की खेती और पैदावार में तीव्र गिरावट देखी गई है। वर्ष 2016 से 2023 के बीच फल उत्पादन का क्षेत्र 54% तक घट गया है और कुल फल पैदावार में 44% की कमी आई है। यह गिरावट विशेष रूप से समशीतोष्ण फल (न बहुत अधिक गर्मी और न ही बहुत अधिक ठंड में उगने वाले फल) प्रजातियों में ज्यादा है, जबकि आम और अमरूद जैसे उष्णकटिबंधीय फलों में मिले-जुले रुझान देखे गए हैं। इस नाशपाती, खुबानी और आलूबुखारा जैसे फलों की पैदावार में 60% से अधिक की गिरावट आई है। सेब उत्पादन का क्षेत्र 55% कम हुआ है, और इसके साथ पैदावार में 30% की गिरावट दर्ज की गई है।
उल्लेखनीय है कि उष्णकटिबंधीय फलों के लिए पिछले सात वर्षों में पैदावार और उत्पादन क्षेत्र में इतनी तीव्र गिरावट नहीं हुई है, लेकिन वे भी जलवायु प्रभावों से अछूते नहीं हैं। आम की पैदावार में 24% की कमी आई है, जबकि लीची उत्पादन पिछले सात वर्षों में 20% घटा है। अमरूद के उत्पादन में 34% क्षेत्र में गिरावट के बावजूद करीब 94% की अप्रत्याशित वृद्धि देखी गई है।
सूबे के फल कारोबारियों का कहना है कि खराब गुणवत्ता के कारण राज्य के फलों के निर्यात में कमी आई है। उत्तराखंड में आम, अंगूर और अन्य ताजे फलों का निर्यात 2015-16 में 4551.35 मीट्रिक टन से घटकर 2023-24 में 1192.41 मीट्रिक टन रह गया है। आर्थिक रूप में फलों का निर्यात 2015-16 में 10.38 करोड़ रुपये से घटकर 2023-24 में 4.68 करोड़ रुपये हो गया है। सरकार की चिंता की यह बड़ी वजह है।