हरियाणा में जाट ही सरकार बनाने में अहम भूमिका अदा करते हैं। अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने तय हैं। भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने हरी झंडी दी तो हरियाणा के अधिकतर भाजपा दिग्गज विधानसभा के चुनाव में ताल ठोंकते नजर आएंगे। प्रदेश चुनाव समिति की दो दिन चली बैठक में यह आम सहमति बनी कि राज्य में तीसरी बार भाजपा की सरकार बनाने तथा कांग्रेस को सत्ता में आने से रोकने के लिए पार्टी के प्रमुख नेताओं का विधानसभा चुनाव लड़ना जरूरी है।
हरियाणा में जाटों की आबादी 27 प्रतिशत है। इसलिए हरियाणा में जाटों को साधकर ही कोई पार्टी सरकार बना सकती है। प्रदेश की 90 विधानसभा सीटों में से 40 पर जाट वोटर्स प्रभावी है। जाट किस कदर प्रदेश की राजनीति पर हावी है इसकी एक मिसाल यह है कि 33 साल प्रदेश की कुर्सी जाटों के हाथ में रही है। बीजेपी ने गैर जाट सीएम बनाया तो कुछ जाटों को नाराजगी हुई लेकिन बीजेपी की अलग नीति और विकासवादी सोच के चलते जाटों ने इसे इग्नोर कर दिया।
बीजेपी और जेजेपी दोनों ही पार्टियों के नेताओं को अब किसानों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी के नेता जब गांवों में प्रचार के लिए पहुंच रहे हैं, तो उन पर किसान हमला कर रहे हैं।
सोनीपत में दहिया खाप में आने वाले 24 गांवों ने पार्टी का बहिष्कार कर दिया। सिरसा में भी इसी तरह का बहिष्कार हुआ। फतेहाबाद में बीजेपी उम्मीदवार डॉ. अशोक तंवर की रैलियों में प्रदर्शनकारियों ने काले झंडे दिखाए। पांच अप्रैल को पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला को जाटों के गढ़ हिसार के नारा गांव में आने से रोक दिया गया था।
आरक्षण भी एक पेचीदा मुद्दा है। बीजेपी और जेजेपी के गठबंधन में टूट, पिछड़े वर्ग के वोटर्स पर निर्भरता और जाटों की अनदेखी के आरोपों के चलते जाट समुदाय और भगवा पार्टी के बीच दूरियां बढ़ रही हैं. खासकर ग्रामीण हरियाणा में। इससे निपटने के लिए बीजेपी स्थानीय जाट नेताओं से जुड़ने की कोशिश कर रही है।
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