विधान सभा चुनाव की भागदौड़ खत्म हो गई है। किसानों का रुख अब खेतों की तरफ है। बोयी जा चुकी फसलों को बढ़वार के लिए खाद जरूरी है। किसान खाद के लिए चुनावी नतीजों से ज्यादा परेशान हैं। कई जिलों में खाद की कालाबाजारी की भी शिकायते हैं।
सुबे के कई जिलों में खाद का संकट गहरा गया है। किसान के खाद के इंतजार में वितरण केंद्रों पर सुबह से शाम तक लाइनों में लग रहे हैं, बावजूद इसके खाद नहीं मिल पा रही है। ऐसे में किसान खाद की किल्लत से जूझ रहे हैं। आलम यह है कि केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल के जिले में भी किसानों को खाद के लिए दो चार होना पड़ रहा है।
सरकार की ओर से राज्य विवरण संघ और विपणन संघ समिति के माध्यम से यूरिया का वितरण कराया जाता है। यहां पर दोनों के मिलाकर 576 केंद्र हैं, वहीं निजी विक्रेताओं की संख्या की बात की जाए तो यह 8,000 से अधिक है। ऐसी स्थिति में यूरिया की कालाबाजारी होने की आशंका भी बढ़ जाती है।
मध्य प्रदेश में अभी तक 28.68 मेट्रिक टन यूरिया मिल चुका है जबकि 23.20 मेट्रिक टन से ज्यादा बांटा जा चुका है। इस बार कृषि विभाग के आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो लगभग 5.35 प्रतिशत कृषि भूमि का रकबा बढ़ चुका है। किसान हरिराम चौधरी के मुताबिक रबी की फसल में यूरिया की काफी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। यूरिया से पैदावार बढ़ जाती है। मौसम विभाग ने भी मावठा (हल्की बारिश) होने की संभावना जाता दी है। इस समय किसानों की चिंता और अधिक बढ़ गई है।
किसानों के अनुसार इस साल किसानों को सोयाबीन की फसल में भाव नहीं होने की वजह से नुकसान उठाना पड़ा है। यदि इस बार समय पर यूरिया नहीं मिलता है तो किसानों को रबी की फसल में भी आर्थिक हानि हो सकती है।
यूरिया की कालाबाजारी रोकने के लिए फ्लाइंग स्क्वॉड बनाए गए हैं। इसमें कृषि विभाग के साथ-साथ जिला प्रशासन के अधिकारी भी हिस्सा ले रहे हैं। मध्य प्रदेश के उज्जैन और इंदौर में लगभग 98 फीसदी बोवनी निपट चुकी है।