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झारखंड में लाख(लाह) की खेती है सूखा प्रभावित ग्रामीणों की आमदनी का वैकल्पिक साधन

झारखण्ड में खेती करना आसान नहीं। बीज बोकर किसान आसमान की तरफ देखते हुए दिन गुज़ारते हैं। समय पर ज़रूरत के हिसाब से बारिश हो तो फसल अच्छी हो जाती है। बारिश न होने पर झारखण्ड में किसान और सूबे की सरकार, दोनों संकट में आ जाते हैं।

इस साल भी झारखण्ड सूखे का सामना करने में जुटा है। खेतों का सीना फटता जा रहा है। बोये गये बीज मौसम की बेरुखी से उगे ही नहीं। बीते साल भी सूबे की हेमंत सोरेन सरकार के सामने इसी तरह का संकट था। झारखण्ड में किसानों के इस संकट के दौरान लाह यानी लाख की उपज ही मददगार है। लाह एक वनोपज है। उत्तर प्रदेश में चिरौंजी की तरह ही यह पेड़ों का उपहार है।
झारखंड में किसान धान की खेती में पिछड़ रहे हैं जबकि यह यहां के किसानों की मुख्य फसल है। इससे किसान साल भर की कमाई करते हैं और इसे बेचकर उनकी आजीविका चलती है। यह इसलिए भी जरूरी हो जाता है क्योंकि यहां पर अधिकांश कृषि योग्य भूमि पर किसान सिंचाई के लिए बारिश पर निर्भर हैं।

झारखण्ड में लाह की खेती मुख्य तौर पर बेर, कुसुम और पलाश के पेड़ में होती है। कुसुम के पेड़ में उगने वाले लाह को सबसे अच्छा माना जाता है। अच्छी गुणवत्ता के कारण बाजार में इसकी अच्छी कीमत मिलती है। इसके अलावा अब सेमियालता का पौधा भी लाह की खेती के लिए बेहतरीन विकल्प है। इसके जरिए लाह कि खेती करना महिलाओं के लिए आसान हो गया है। सेमियालया पौधें की ऊंचाई तीन से चार फीट तक होती है तो इसमें लाह की खेती करना आसान होता है।

लाह का सबसे बड़ा उत्पादक सूबा होने के बावजूद झारखण्ड में

झारखंड मे लाह की खेती की संभावनाओं को देखते हुए कहा जा सकता है कि यहां पर लाह की प्रोसेसिंग और मार्केटिंग की बेहतर संभावनाएं हैं। सच्चाई यही है कि सबसे बड़े उत्पादक होने के बावजूद सूबे में इसके उत्पाद बेचने के मामले में बहुत पीछे हैं। ग्रामीणों को लाह के उपयोगी सामान बनाने का प्रशिक्षण देकर आय और निर्यात तक के लिए तैयार किया जाना संभव है।

PHOTO CREDIT  – Agrilearner.com

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