मेरठ के गोविंदपुरी गांव की प्रगतिशील महिला किसान उर्मिला वशिष्ठ जैविक खेती के जरिए फसलों में विविधता ला रही हैं| इस प्रक्रिया के तहत वह एक ही खेत में एक साथ कई फसलें उगा रही हैं|
अलसी, लहसुन, हल्दी जैसी फसलों को प्रसंस्कृत करके वह गांव में ही रहकर कम लागत में कई गुना मुनाफा कमा रही है| इसके जरिए आसपास की महिलाओं को रोजगार भी मिल रहा है| साथ ही इस बारे में क्षेत्र के अन्य किसानों को भी प्रेरित कर रही हैं| हल्दी, लहसुन और अलसी इम्युनिटी बढ़ाने में उपयोगी साबित होते हैं| हर आपदा अवसर मुहैया कराती है| इस बार कोरोना काल में उर्मिला के कृषि उत्पादों की भारी मांग रही है. इनकी हल्दी और लहसुन का अचार तो विदेशों में भेजा जा रहा है|
किसान परिवार में पली-बढ़ी उर्मिला को खेतीबाड़ी के बारे में बचपन से ही अच्छी जानकारी थी| वर्ष 1972 में शादी के बाद ससुराल आई तो यहां भी खेती-किसानी देखने को मिली| शादी के बाद उन्होंने पढ़ाई नहीं छोड़ी. पहले उन्होंने बीए किया और फिर एमए. पति ने उस जमाने में रुड़की से सिविल इंजीनियरिंग में एमटेक किया था| जाहिर है पढ़ाई पूरी होते ही उन्हें जल निगम में नौकरी मिल गई| इस सिलसिले में उर्मिला को पति के साथ पूरे उत्तर प्रदेश में घूमने और रहने का मौका मिला|
उर्मिला बताती हैं कि पैसे की कोई कमी नहीं थी लेकिन पति ने जॉब के दौरान कहीं अपना घर नहीं बनाया| उनकी इच्छा थी कि रिटायरमेंट के बाद गांव में ही रहकर खेतीबाड़ी करेंगे| वर्ष 2003 में पति के रिटायर होने के बाद वह गोविंदपुरी इलाके में रहने लगीं| वर्ष 2015 में पति के निधन के बाद उर्मिला टूट गई लेकिन हिम्मत नहीं हारी|
कहते हैं पढ़ाई-लिखाई कभी बेकार नहीं जाती. बुढ़ापे में यही उनका सहारा बनी| उर्मिला ने वर्ष 2016 में खेतीबाड़ी की कमान पूरी तरह से अपने हाथ में ले ली| इसमें कुछ नया करने के लिए उन्होंने गाजियाबाद में जैविक खेती का प्रशिक्षण लिया| बाद में देश के प्रगतिशील किसान भारत भूषण त्यागी के पास प्रशिक्षण लिया| यहां उन्होंने जड़ी-बूटी उगाने के बारे में समझा|
अब उर्मिला यह बात अच्छी तरह से समझ में आ गई कि परंपरागत खेती से कुछ फायदा नहीं होगा| आमदनी बढ़ाने के लिए ऐसी फसलें उगाई जाएं जो तुरंत बिक जाएं और दाम भी अच्छे मिलें| उर्मिला बताती हैं कि आजकल लोग स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो रहे हैं. जैविक उत्पादों को वह किसी भी कीमत पर खरीदने को तैयार हैं| पिछले दिनों उन्होंने धान की फसल उगाई थी. जैविक उत्पाद होने की वजह से वह मनचाहे भाव पर हाथोंहाथ बिक गई|
महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना है मकसद उर्मिला अब जैविक खेती के जरिए जड़ी-बूटियां पैदा करने पर फोकस कर रही हैं| वह उन्हें गांव में प्रसंस्करित करके उत्पाद तैयार करेंगी| इसके पीछे उनका उद्देश्य सिर्फ पैसा कमाना ही नहीं है बल्कि इस उद्यम के जरिए वह आसपास की ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को रोजगार देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना चाहती हैं|