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करेला : घर में गमले से लेकर खेत में तैयारी के साथ बोना लाभकारी

करेले की खेती केे लिए गर्म वातावरण की आवश्यकता होती है। इसे गर्मी और बारिश दोनों मौसम में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। फसल में अच्छी बढ़वार, फूल व फलन के लिए 25 से 35 डिग्री सेंटीग्रेट का तापमान अच्छा होता है। बीजों के जमाव के लिए 22 से 25 डिग्री सेंटीग्रेट का ताप अच्छा होता है। वहीं बात करें इसके लिए उपयुक्त मिट्टी की तो करेले की हाईब्रिड (संकर) बीज की बुवाई के लिए अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट या दोमट मिट्टी अच्छी रहती है।

करेला की खेती साल में दो बार की जा सकती है। सर्दियों वाले करेला की किस्मों की बुआई जनवरी-फरवरी की जा सकती है जिसकी मई-जून में उपज मिलती है। वहीं गर्मियों वाली किस्मों की बुआई बरसात के दौरान जून-जुलाई की जाती हैं जिसकी उपज दिसंबर तक प्राप्त होती हैं।

करेले के बीजों की बुवाई के लिए खेत की तैयारी
सबसे पहले खेत की ट्रैक्टर और कल्टीवेटर से अच्छी तरह से जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लें। इसके बाद पाटा लगाकर खेत का समतल बना लें। इसके अलावा खेत में जल निकास की व्यवस्था सही हो और जल का भराव न हो ऐसी व्यवस्था करें। इसके बाद बुवाई से पहले खेत में नालियां बना लें जाकि पानी का जमाव खेत में न हो पाए। नालियां समतल खेत में दोनों तरफ मिट्टी चढ़ाकर बनानी चाहिए।

करेले के बीज की बुवाई करने से 25-30 दिन पहले 25-30 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद को एक हैकटेयर खेत में मिलाना चाहिए। इसके अलावा बुवाई से पहले नालियों में 50 किलो डीएपी, 50 किलो म्यूरेट आफ पोटास का मिश्रण प्रति हैक्टेयर के हिसाब से (500 ग्राम प्रति थमला) मिलाएं। 30 किलो यूरिया बुवाई के 20-25 दिन बाद व 30 किलो यूरिया 50-55 दिन बाद पुष्पन व फलन के समय डालना चाहिए। यूरिया शाम के समय डालना चाहिए जब खेत मे अच्छी नमी हो।

करेले के बीजों को 2 से 3 इंच की गहराई पर बोना चाहिए। वहीं नाली से नाली की दूरी 2 मीटर, पौधे से पौधे की दूरी 50 सेंटीमीटर तथा नाली की मेढों की ऊंचाई 50 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। खेत में 1/5 भाग में नर पैतृक तथा 4/5 भाग में मादा पैतृक की बुआई अलग अलग खंडो में करनी चाहिए। फसल के लिए मजबूत मचान बनाएं और पौधों को उस पर चढ़ाएं जिससे फल खराब नहीं होते हैं।

पॉलीथीन की थैलियों में भी कर सकते हैं बुवाई पॉलीथीन की थैलियों में भी करेले की पौध तैयार की जा सकती है। इसके लिए 15 बाय 10 से.मी. आकार की पॉलीथीन की थैलियों में 1:1:1 मिट्टी, बालू व गोबर की खाद भरकर जल निकास की व्यवस्था के लिए सूजे की सहायता से छेद कर सकते हैं। बाद में इन थैलियों में लगभग 1 से.मी. की गहराई पर बीज बुवाई करके बालू की पतली परत बिछा लें तथा हजारे की सहायता से पानी लगाएं। लगभग 4 सप्ताह में पौधे खेत में लगाने के योग्य हो जाते हैं। जब पाला पडऩे का डर समाप्त हो जाए तो पॉलीथीन की थैली को ब्लेड से काटकर हटाने के बाद पौधे की मिट्टी के साथ खेत में बनी नालियों की मेढ़ पर रोपाई करके पानी दें।

करेले में सिंचाई व्यवस्था बारिश में करेले की बुवाई करने पर इसमें कम सिंचाई से भी काम चल जाता है लेकिन गर्मी में इसकी समय-समय पर सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। सिंचाई करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि खेत में पानी का जमाव नहीं हो। इसके लिए खेत में नालियां इस तरह बनानी चाहिए कि भूमि में नमी बनी रहे लेकिन खेत में जल का ठहराव नही हो पाए।

करेला के रोग और उपाय करेले की फसल को कई प्रकार के रोग, कीट लगने का डर बना रहता है। इसमें मुख्यत: गाजर, लाल भृंग और महू रोग का प्रकोप अधिक रहता है। इसके लिए कृषि विशेषज्ञ की सलाह लेकर कीटनाशक या रासायनिक खाद का प्रयोग करना चाहिए।

करेले की कब करें तुड़ाई फल पकने पर फल चमकीले नारंगी रंग के हो जाते हैं। फल को तभी तोडऩा चाहिए जब फल का कम से कम दो तिहाई भाग नारंगी रंग का हो जाए क्योंकि कम पके फल में बीज अल्प विकसित रहते हैं। अधिक पकने पर फल फट जाते हैं और बीज का नुकसान होता है।

करेले की एक एकड़ में लागत 20-25 हजार रुपए तक आती है। जबकि इससे प्रति एकड़ 50 से 60 क्विंटल की उपज प्राप्त हो सकती है। इसका बाजार में भाव करीब 2 लाख रुपए तक प्राप्त हो जाता है। इस हिसाब से देखें तो करेले की खेती से अच्छा मुनाफा कमाया जा सकत है|

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