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उत्तर प्रदेश : दूसरे राज्यों पर नहीं रहना होगा निर्भर, किसानों को बीज उपलब्ध कराएगी योगी सरकार
उत्तर प्रदेश : दूसरे राज्यों पर नहीं रहना होगा निर्भर, किसानों को बीज उपलब्ध कराएगी योगी सरकार

उत्तर प्रदेश : दूसरे राज्यों पर नहीं रहना होगा निर्भर, किसानों को बीज उपलब्ध कराएगी योगी सरकार

अभी तक बीज के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भर थे। अब, उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ – सरकार ने खुद अच्छी गुणवत्ता और मौसम के अनुकूल ज्यादा पैदावार वाले बीज उपलब्ध कराना तय किया है। सब्जियों की सस्ती पौध के लिए योगी सरकार ने सूबे में 36 हाईटेक नर्सरियों की स्थापना की है। इनके द्वारा किसानों को उच्च गुणवत्ता वाली तरकारी की पौध सस्ती दरों पर मुहैया कराई जा रही है।

मिली जानकारी अनुसार उत्तर प्रदेश में कुल उपयोग का करीब आधा हिस्सा दूसरे राज्यों से मांगना पड़ता है। इसके लिए सरकार को हर साल करीब 3000 करोड़ रुपये खर्च करने होते हैं। सभी फसलों के हाइब्रिड बीज तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश से आते है। बात करें बीज के आंकड़ों कि तो विभागीय आंकड़ों के अनुसार गेहूं के 22 फीसदी, धान के 51 फीसदी, मक्का के 74 फीसदी, जौ के 95 फीसदी, दलहन के 50 फीसदी और तिलहन के 52 फीसदी बीज गैर राज्यों से आते हैं।

योगी सरकार ने बीज उत्पादन की एक व्यापक योजना तैयार की है। इसके तहत प्रदेश के नौ कृषि जलवायु क्षेत्रों में होने वाली फसलों के मद्देनजर पांच बीज पार्क (वेस्टर्न जोन, तराई जोन, सेंट्रल जोन, बुंदेलखंड और ईस्टर्न जोन) पीपीपी मॉडल पर बनाए जाएंगे. हर पार्क का रकबा न्यूनतम 200 हेक्टेयर का होगा। कृषि विभाग के पास बुनियादी सुविधाओं के साथ ऐसे छह फार्म उपलब्ध हैं। इसमें से दो फार्म 200 हेक्टेयर, दो फार्म 200 से 300 और दो फार्म 400 हेक्टर से अधिक के हैं। राज्य सरकार इनको इच्छुक पार्टियों को लीज पर दे सकती है।

उल्लेखनीय है कि कृषि योग्य भूमि का सर्वाधिक रकबा (166 लाख हेक्टर) उत्तर प्रदेश का है। कृषि योग्य भूमि का 80 फीसद से अधिक रकबा सिंचित है। वहीं, प्रदेश के करीब 3 करोड़ परिवारों की आजीविका कृषि पर निर्भर हैं। उत्तर प्रदेश खाद्यान्न और दूध के उत्पादन में देश में नंबर एक, फलों और फूलों के उत्पादन में दूसरे और तीसरे नंबर पर है।

उल्लेखनीय है कि सीड पार्क बनाने से सालाना करीब तीन हजार करोड़ रुपये की बचत होगी। इसके अलावा प्लांटवार अतिरिक्त निवेश आएगा। प्लांट से लेकर लॉजिस्टिक लोडिंग, अनलोडिंग, परिवहन में स्थानीय स्तर पर लोगों को रोजगार मिलेगा. सीड रिप्लेसमेंट दर (एसएसआर) में सुधार आएगा, इसका असर उपज पर पड़ेगा।

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