महाराष्ट्र की किसानों से जुड़ी एक रिपोर्ट के अनुसार अमरावती जिले से जो आंकड़ें सामने आए हैं, वो वाकई डराने वाले हैं। यवतमाल के बॉर्डर से सटे अमरावती में किसानों की आत्महत्या पर आई एक रिपोर्ट ने हलचल मचा दी है। दिलचस्प बात है कि यवतमाल की ही तरह अमरावती को भी कपास और सोयाबीन की खेती के लिए जाना जाता है। इसके अलावा यहां पर मशहूर नागपुर के संतरों की भी खेती है। इस साल मई तक अमरावती में 143 किसानों ने आत्महत्या की है यानी रोजाना एक किसान यहां मौत को गले लगा रहा है।
अंग्रेजी भाषा के दैनिक टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार अमरावती के बाद यवतमाल का नंबर है जहां पर 132 किसानों ने आत्महत्या की है। जून के आंकड़ें आने अभी बाकी हैं। साल 2021 से ही अमरावती ने किसानों की आत्महत्या के मामले ने यवतमाल को पीछे छोड़ दिया है। यहां पर उस साल 370 किसानों ने आत्महत्या की थी। इसके बाद साल 2022 में 349 और 2023 में 323 किसानों ने मौत को चुना। यवतमाल की अगर बात करें तो इन तीन सालों में यह आंकड़ा 290, 291 और 302 था।
रिपोर्ट के मुताबिक अमरावती में स्थितियां काफी मुश्किल हैं। यहां के किसानों ने सोयाबीन की खेती की तरफ रुख किया था और इसकी फसल में गिरावट दर्ज हुई। साथ ही दाम भी पिछले साल 4000 क्विंटल से नीचे चले गए थे। इसके अलावा पर्याप्त बैंकिंग क्रेडिट का न होना भी एक बड़ी वजह है। आज भी कई किसान छोटी फाइनेंस कंपनियों या फिर साहूकारों पर आर्थिक मदद के लिए निर्भर हैं। इस वजह से उन्हें रिकवरी के समय काफी मुश्किल परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है। किशोर तिवारी वसंतराव नाइक शेतकारी स्वावलंबन मिशन के चेयरमैन हैं।
रिपोर्ट के अनुसार सूखाग्रस्त मराठवाड़ा में यह संख्या बहुत कम है। डिविजन के सभी आठ जिलों में अप्रैल 2024 तक 267 आत्महत्याएं दर्ज की गई हैं। मराठवाड़ा के लिए मई और जून के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। जिला स्तरीय समिति बनाई गई है जो यह जांच करती है कि आत्महत्या की वजह कृषि संकट है या फिर कोई और कारण। वहीं पीड़ित परिवार को 1 लाख रुपए का मुआवजा पाने के लिए, मृतक को कर्ज, वसूली का दबाव, फसल की विफलता और खेती से जुड़े बाकी संकटों का सामना करना पड़ता है। अमरावती में 143 आत्महत्याओं में से 33 आत्महत्याएं कृषि संकट के कारण हुई हैं।
गौरतलब है कि साल 2001 से राज्य सरकार की तरफ से विदर्भ, अमरावती, अकोला, यवतमाल, वाशिम, बुलढाना और वर्धा जिले में किसानों की आत्महत्या से जुड़े आंकड़ें इकट्ठा किए जा रहे हैं। पिछले दो दशकों में इन जिलों में 22000 से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं। इसके कुछ साल बाद सरकार ने छत्रपति संभाजी डिविजन के आंकड़ें जुटाने का काम भी शुरू कर दिया जिसे पहले औरंगाबाद डिविजन के तौर पर जाना जाता था।