पंजाब के सभी जिलों में भू-जल संकट है। ज्यादातर ब्लाकों में हर साल सिंचाई का पानी और नीचे जा रहा है। चावल की पैदावार के लिए और ज्यादा पानी की दरकार होती है। बासमती चावल को तो और ज्यादा पानी चाहिए। पंजाब सरकार ने धान की सीधी बिजाई करने या धान बोने पर प्रति बीघा पैसा देना जैसी योजनाएं चला रखी हैं। बीते साल कुछ किसानों ने खेत खाली रखकर सरकार से भुगतान लिया। सरकार ने सिंचाई का पानी और बिजली बचत की। इस साल पंजाब में पानी की ज्यादा खपत वाली धान की बिजाई पर रोक लगा दी है। इस साल मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी सरकार ने लंबी अवधि वाली धान की पूसा-44 किस्म की खेती पर प्रतिबंध लगाने का फैसला लिया है, जिसमें नर्सरी की बुआई से लेकर अनाज की कटाई तक 155-160 दिन का समय लगता है। राज्य सरकार चाहती है कि किसान पीआर-126 जैसी कम अवधि वाली किस्में लगाएं, जो लगभग 125 दिनों में पक जाती हैं और कम पानी की खपत करती हैं।
गौरतलब है कि पंजाब के किसानों ने 2023 में 3.86 लाख हेक्टेयर में पूसा-44 धान की बुआई की थी, जोकि साल 2022 के 5.67 लाख हेक्टेयर से कम है। मुख्यमंत्री मान ने दावा किया कि पूसा-44 धान के क्षेत्र में कमी से राज्य को 477 करोड़ रुपये की बिजली और 5 अरब क्यूसेक भूजल बचाने में मदद मिली। उनकी सरकार चाहती है कि किसान आने वाले सीजन में पूसा-44 के तहत एक भी हेक्टेयर में बुआई न करें, जिसके लिए नर्सरी की बुआई मई के मध्य में शुरू होगी और पौध की रोपाई एक महीने बाद होगी।
राज्य सरकार चाहती है कि किसान पीआर-126 जैसी कम अवधि वाली किस्में लगाएं, जो लगभग 125 दिनों में पक जाती हैं और कम पानी की खपत करती हैं। हालांकि, किसान इस फैसले से खुश नहीं हैं। धान की पूसा-44 प्रजाति से पीआर-126 की तुलना में प्रति एकड़ 4-5 क्विंटल धान का दाना अधिक निकलता है। पिछले साल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 2,203 रुपये प्रति क्विंटल पर, यह 8,812-11,015 रुपये प्रति एकड़ (एक हेक्टेयर 2.47 एकड़ के बराबर) की अतिरिक्त आय में बदल जाता है। वे इस अतिरिक्त आय को छोड़ना नहीं चाहेंगे। उनकी गणना में पानी की बचत कोई मायने नहीं रखती, क्योंकि सिंचाई पंपों के लिए बिजली मुफ्त दी जाती है।
एक जानकारी के अनुसार पंजाब में लगभग 38 लाख हेक्टेयर खेती लायक जमीन है। साल 2023 के खरीफ सीज़न में करीब 31.99 लाख हेक्टेयर में धान बोया गया। इसमें सुगंधित बासमती किस्मों का रकबा 5.95 लाख हेक्टेयर था. हालांकि अब प्रतिबंधित पूसा-44 के तहत क्षेत्र में काफी गिरावट आई है, लेकिन पंजाब में किसानों ने इसे पूरी तरह से नहीं छोड़ा है। उन्होंने पीआर-126 किस्म के तहत क्षेत्र को 2022 में 5.58 लाख हेक्टेयर से बढ़ाकर 8.59 लाख हेक्टेयर कर दिया है।