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ज्वार की खेती से किसानों को लाभ और जमीन को ताकत भी मिलती है

ज्वार की खेती खाने के लिए मोटे दाने वाले अनाज और हरे चारे के लिए की जाती है | ज्वार के पूरे पौधे का इस्तेमाल पशुओ के चारे में और खाने के रूप में इसका इस्तेमाल खिचड़ी और चपाती बनाकर किया जाता है | इसकी खेती किसी भी जगह पर की जा सकती है, सिंचित और असिंचित जगह का इसकी फसल पर कोई असर देखने को नहीं मिलता है | इसके पौधों की लम्बाई 10 से 12 फ़ीट तक पायी जाती है | जिसे आप हरे चारे के लिए कई बार कटाई कर सकते है | ज्वार की खेती में भारत विश्व में तीसरे पायदान पर है |

ज्वार के बीजो की रोपाई बीज के माध्यम से की जाती है | बीज रोपाई के लिए ड्रिल और छिड़काव विधि का इस्तेमाल किया जाता है | एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 12 से 15 KG बीजो की जरूरत होती है, किन्तु हरे चारे के लिए की गयी रोपाई के लिए 30 KG बीज लगते है | बीज रोपाई से पहले बीजो को कार्बेंडाजिम की उचित मात्रा से उपचारित कर लिया जाता है |

अनाज व चारे के लिए की जाने वाली ज्वार की खेती उत्तरी भारत में खरीफ के मौसम में और दक्षिणी भारत में रबी के मौसम में की जाती है| ज्वार की प्रोटीन में लाइसीन अमीनो अम्ल की मात्रा 1.4 से 2.4 प्रतिशत तक पाई जाती है जो पौष्टिकता की दृष्टि से काफी कम है| इसके दाने में ल्यूसीन अमीनो अम्ल की अधिकता होने के कारण ज्वार खाने वाले लोगों में पैलाग्रा नामक रोग का प्रकोप हो सकता है|

इसकी फसल अधिक बारिश वालों क्षेत्रों में सबसे अच्छी होती है| ज्वार के अच्छे भावों को दृष्टिगत रखते हुए अगर कुछ किसान मिलकर अपने पास-पास लगे हुए खेतों में इस फसल को उगाकर अधिक लाभ उठा सकते हैं| क्योंकि इसके दाने और कड़वी दोनों ही उचित मूल्य पर बिक सकते हैं|

भारत में मुख्य रूप से ज्वार की खेती महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में होती है| अगर उत्तर प्रदेश की बात करें, तो मुख्यतः झांसी, हमीरपुर, जालौन, फतेहपुरा, इलाहाबाद, फर्रुखाबाद, मथुरा, हरदोई क्षेत्रों में धान की खेती की जाती है|

इसकी खेती रबी व खरीफ दोनों मौसम में होती है. उत्तरी भारत में ज्वार की बुवाई का उचित समय जुलाई का प्रथम सप्ताह है. ज्वार की बुवाई मानसून की पहली बरसात के साथ कर देनी चाहिए| देश के दक्षिणी राज्यों जैसे महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश तथा तमिलनाडु जहां ज्वार रबी के मौसम में उगाई जाती है, वहां बुवाई 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर के मध्य करना अच्छा रहता है|

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