हिमाचल प्रदेश के लाहुल-स्पीति इलाके का आलू चिप्स और भुजिया बनाने वाले कारखानों की पहली पसंद हैं। ये कंपनियां, किसानों को पेशगी भुगतान करके आलू खरीदते हैं। आदिवासी बहुल इस दुर्गम क्षेत्र का आलू सामान आकार का और पतले छिलके वाला होता है।
अब इस आलू और इसके बीज की कई सूबों से मांग आ रही है। हिमाचल प्रदेश की सरकार भी इस आलू-बीज को इस साल बड़ी मात्रा में खरीदेगी। इससे किसानों को लाभ मिलेगा। सरकार ने बीते साल से दो सौ रुपए ज्यादा देना तय किया है।
देशभर में प्रसिद्ध जनजातीय क्षेत्र लाहौल का आलू बीज बाहरी राज्यों के बेचने के लिए तैयार हो गया है। प्रदेश सरकार भी 200 रुपये महंगे दाम के साथ आलू की खरीद करेगी। राज्य सरकार ने इस बार 4,700 रुपये प्रति क्विंटल का रेट तय किया है। गत साल यह भाव 4,500 रुपये था। राज्य सरकार भी 7,000 बैग लाहौल के आलू का बीज खरीदेगी। इसके अलावा देश के अन्य राज्यों से भी बीज की मांग आने लगी है।
लाहौल आलू उत्पादक संघ (एलपीएस) ने कारगिल को करीब 1,200 बैग भेजे दिए हैं। एक बोरी में 50 किलोग्राम आलू का बीज होता है। इसके अलावा बीज गुजरात, महाराष्ट्र, अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल को भी भेजने की तैयारी है। हालांकि लाहौल में अब सब्जियों ने आलू बीज और मटर की जगह लेना शुरू कर दी है। साल दर साल मटर और आलू का उत्पादन कम होता जा रहा है।
इस बार एलपीएस के साथ दो अन्य पंजीकृत संस्थाओं ने किसानों से करीब 45,000 बैग आलू का बीज खरीदा है। लाहौल में आलू बीज की कुफरी ज्योति, चंद्रमुखी और कुफरी हिमालयन प्रमुख किस्में हैं। आलू लाहौल के किसानों की मुख्य नगदी फसल है। लाहौल आलू उत्पादक संघ (एलपीएस) के अध्यक्ष सुदर्शन जस्पा ने कहा कि प्रदेश सरकार के कृषि विभाग ने आलू बीज का रेट तय कर दिया है।
कुफरी ज्योति, चंद्रमुखी और कुफरी हिमालयन प्राथमिक किस्में हैं जो लाहौल के आलू कृषि क्षेत्र का चेहरा बन गई हैं। ये किस्में अपने असाधारण स्वाद, बनावट और विविध पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुकूल होने के लिए प्रसिद्ध हैं। लाहौल में किसानों ने अपनी खेती की तकनीकों को सावधानीपूर्वक निखारा है, जिससे इन आलूओं की बेहतर गुणवत्ता में योगदान हुआ है।