पहले बरसात न होने, फिर बरसात और बाद में ओलावृष्टि और फिर मूसलाधार बरसात का सिलसिला। लगातार अपने कपड़े बदलने वाला हिमाचल प्रदेश का मौसम इस साल सेब उत्पादकों को तकलीफ़ दे रहा है। इन सभी कारणों से इस बार उम्मीद से कम सेब की पैदावार होने का अनुमान है।
सेब पहाड़ी सूबे हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था का आधार है। सेब की बागवानी और इसके कारोबार में लोगों की जरूरतों से लेकर बच्चों की शादियों का आधार सेब की फसल है। हिमाचल प्रदेश के बागवानी महकमे के कारिंदों ने इलाकों में पहुंचकर जो मौका-मुआयना कर रिपोर्ट दर्ज कराई है उसमें उम्मीद से कम पेंटी सेब होने की उम्मीद है।
मिली जानकारी के अनुसार हिमाचल प्रदेश में इस साल सेब उत्पादन लगभग पौने दो करोड़ पेटी के बीच में सिमट जाएगा। बीते साल की तुलना में यह लगभग आधी फसल है। सूबे में बागवानों को करोड़ों रुपए का नुकसान होने का अंदाजा लगाया जा रहा है।
मौसम से लेकर आबोहवा ठीक थी तो साल 2010 में सबसे अधिक सेफ हुआ था। बागवानी महकमे के मुताबिक रिकॉर्ड 5.11 करोड़ पेटी सेब का उत्पादन दर्ज किया गया था। बाद में इतनी पैदावार नहीं हुई। अब, जलवायु परिवर्तन से सेब की कम होती पैदावार हिमाचल के बागवानों को निराश कर रही है। जानकारी के मुताबिक साल 2022 में 3.36 करोड़ पेटी की आमद दर्ज की गई थी।
सेब उत्पादक और कारोबारी अभी सेब की पेंटी और इनके वज़न को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे। अब केंद्र सरकार ने बाहरी मुल्कों से, ख़ासतौर पर अमरीका से आने वाले सेब की ड्यूटी कम कर दी है।
भारतीय सेब के ऊपर इसका सीधा और बुरा असर पड़ेगा।
बाजार में भारतीय सेब की कीमत कम होगी। तुलनात्मक रूप से लोग अमेरिका का सेब खरीदना ज्यादा पसंद करेंगे।
हिमाचल प्रदेश में जलवायु परिवर्तन का असर पड़ने से बारिश, ओलावृष्टि और बर्फबारी की वजह से सेब के बगीचों में समय पर फूल नहीं खिले । गौरतलब है कि सेब के फूल आने के दौरान तापमान औसत 15 डिग्री जरूरी होने की उम्मीद की जाती है। ऊंचे इलाकों में तापमान 8 डिग्री से भी नीचे पहुंच गया। इससे सेब की फसल पर बुरा असर पड़ा।
हिमाचल प्रदेश के ज्यादातर हिस्सों में अप्रैल और मई महीने में बार-बार ओलावृष्टि होती रही। इससे सेब की फसल को भारी नुक्सान पहुंचा।