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उत्तराखंड : खेतों में सौर उर्जा की जगह अब होगी बॉयो-फेंसिंग

उत्तराखंड में वन्यजीवों की ओर से फसलों के नुकसान को कम करने के लिए सौर ऊर्जा बाड़ की जगह अब बॉयो-फेंसिंग को बढ़ावा दिया जाएगा। सरकार की ओर से इसके लिए सेल गठित करने के साथ ही विशेष अधिकारी नियुक्त किए जाने के निर्देश दिए गए हैं। यह सेल बायो-फेंसिंग को बढ़ावा देने के साथ ही इन विषयों पर शोध भी करेगी।

इस समस्या से बचने के लिए अब सरकार ने बॉयो-फेंसिंग बाड़ को बढ़ावा दिए जाने का निर्णय लिया है। प्रदेश में खासतौर पर जंगली सूअर, हाथी और बंदर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। जिस क्षेत्र में जिस वन्यजीव का आतंक अधिक है, उस क्षेत्र में उसी के अनुरूप बॉयो-फेंसिंग की जाएगी

देहरादून वन प्रभाग के वनाधिकारी नीतीशमणि त्रिपाठी ने बताया कि उन्होंने यह प्रयोग वर्ष 2015 में लैंसडौन में किया था, जो सफल रहा। इसके तहत मधुमक्खी पालन का बॉयो-फेंसिंग के रूप में प्रयोग किया जाता है।

इसमें मधुमक्खी के डिब्बों को खेत के किनारे जमीन पर रखने के बजाय पेड़ों या खूंटों की मदद से जमीन से ऊपर एक तार की सहायता से लटका दिया जाता है। जैसे ही कोई जानवर इस तार को हिलाता है, मधुमिक्खयां बाहर आकर उस पर हमला कर देती हैं। हाथियों को खेतों से दूर रखने में यह तरीका कारगर साबित हुआ है। कुछ समय पहले रामनगर में भी यह तरीका अपनाया गया। वन्यजीव मधुमक्खियों से दूरी बनाए रखते हैं। इस प्रकार की फेंसिंग अनेक देशों में प्रयोग की जा रही है।

मौसम, जलवायु और भौगोलिक स्थितियों को देखते हुए अलग-अलग जगह पर अलग-अलग बॉयो-फेंसिंग की जाती है। इसमें आमतौर पर काला बांस, कांटा बांस, राम बांस, जेरेनियम, लेमनग्रास, विभिन्न प्रकार के कैक्टस, यूफोरबिया एंटीकोरम (त्रिधारा), डेविल्स बैकबोन, पूर्वी लाल, क्लेरोडेंड्रम इनर्मिस, बोगनविलिया, करौंदा, जेट्रोफा करकस, डुरंटा इरेक्टा, हाईब्रिड विलेट्री, लीलैंड सरू और हेमेलिया आदि।

 

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