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अगले 38 वर्षों में 44 फीसदी बढ़ जाएगी रेत की वैश्विक मांग, जानिए भारत को कितनी होगी जरुरत

हाल ही में किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि वैश्विक स्तर पर अगले 38 वर्षों में रेत की मांग करीब 44 फीसदी बढ़ जाएगी। शोधकर्ताओं के मुताबिक रेत की जो मांग 2020 में 320 करोड़ मीट्रिक टन प्रति वर्ष थी, वो अगले 38 वर्षों में 2060 तक बढ़कर 460 करोड़ मीट्रिक टन प्रति वर्ष पर पहुंच जाएगी।

इसका मतलब की इन 40 वर्षों में इसमें करीब 140 करोड़ मीट्रिक टन का इजाफा होने की सम्भावना है। हालांकि शोधकर्ताओं ने इस बात को भी स्वीकार किया है कि रेत का कुल कितना प्राकृतिक भंडार मौजूद है इसकी सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन इतना स्पष्ट है कि जिस तेजी से इसकी मांग बढ़ रही है। आने वाले वक्त में इसकी भारी किल्लत हो जाएगी। इस बारे में लीडेन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किया यह अध्ययन ‘जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी’ में प्रकाशित हुआ है।

इस अध्ययन में उन्होंने रेत की बढ़ती मांग और आपूर्ति के अंतर को समझने के लिए उन्होंने अपने द्वारा किए सर्वेक्षण, आबादी में होती वृद्धि और आर्थिक विकास सम्बन्धी आंकड़ों का उपयोग किया है, जिससे यह जाना जा सके की आने वाले वर्षों में कंक्रीट की मांग को समझा जा सके।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दुनिया भर में बन रही इमारतों की 26 साइट का सर्वे किया है, जो सबसे ज्यादा रेत उपयोग कर रही हैं।

शोध से पता चला है कि वैश्विक स्तर पर रेत की बढ़ती मांग के लिए कहीं हद तक एशिया और अफ्रीका में तेजी से होता शहरीकरण एक बड़ी वजह है। यदि पिछड़े और कम आय वाले देशों को देखें तो 2060 तक उनकी रेत की मांग में 300 फीसदी तक की वृद्धि हो सकती है, जिसके पूर्वी अफ्रीका में सबसे ज्यादा 543.6 फीसदी रहने की सम्भावना है। इसके बाद पश्चिम अफ्रीका में 488.5 फीसदी की वृद्धि की सम्भावना जतायी है|

रिपोर्ट से पता चला है कि भारत में भी बढ़ते शहरीकरण के चलते अलगे 38 वर्षों में रेत की मांग में भारी इजाफा हो सकता है। अनुमान है कि 2060 तक देश की मांग में 294.4 फीसदी का इजाफा हो सकता है। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि जहां 2020 से 2060 के बीच अमेरिका में रेत की कुल मांग 568 करोड़ टन रहने की सम्भावना है, उसके विपरीत भारत में यह करीब 2,590 करोड़ टन पर पहुंच जाएगी। वहीं चीन में इसके सबसे ज्यादा 4,570 करोड़ टन रहने की सम्भावना है।

ऐसा नहीं है कि धरती पर रेत नहीं है सहारा, थार जैसे रेगिस्तानों में रेत के विशाल भण्डार मौजूद हैं। लेकिन समस्या यह है कि उस रेत का अधिकांश भाग औद्योगिक उपयोग के लिए अनुपयुक्त है। ऐसे में निर्माण सम्बन्धी जरूरतों के लिए सबसे उपयोगी रेत नदी तल से ली जाती है। लेकिन अफसोस की बात है कि जिस तेजी से इसकी मांग बढ़ रही है। इसका अवैध व्यापार शुरू हो गया है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक दुनिया भर में बढ़ते शहरीकरण के चलते रेत की मांग जिस तरह से बढ़ रही है आने वाले वक्त में यह समस्या विकराल रूप ले लेगी। पहले ही दुनिया के कई हिस्सों में इसकी मांग आपूर्ति से कहीं ज्यादा बढ़ गई है।

नतीजन भारत, इंडोनेशिया जैसे देशों में इसका अवैध व्यापार तेजी से फल-फूल रहा है। इंडोनेशिया में तो इसके अवैध खनन के चलते कई द्वीप नष्ट होने की कगार पर आ गए हैं। इस अवैध खनन का खामियाजा पर्यावरण को भुगतना पड़ रहा है। ऐसे में इसपर यदि अभी कार्रवाई न की गई तो आने वाले वक्त में स्थिति बद से बदतर हो जाएगी।

रेत की इस कमी से बचने के लिए शोधकर्ताओं ने कुछ सुझाव भी दिए हैं उनके अनुसार यदि मैटेरियल की दक्षता में इजाफा कर दिया जाए तो इस कमी को दूर किया जा सकता है।

इसके लिए बिल्डिंग के जीवनकाल में वृद्धि करना, कंक्रीट का पुनर्चक्रण, इमारतों में हल्की सामग्री का उपयोग और इस तरह से डिजाईन करना की उनमें कम से कम कंक्रीट का उपयोग हो। शोधकर्ताओं के मुताबिक इस तरह से हम रेत की बढ़ती मांग को स्थिर कर सकते हैं।

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