हिमाचल प्रदेश में 1134 करोड़ रुपए की विश्व बैंक की ओर से वित्त पोषित बागवानी विकास परियोजना के कार्यान्वयन के बावजूद सेब उत्पादन बढ़ नहीं पा रहा। बागवानी विभाग द्वारा हाल में तैयार रिपोर्ट के अनुसार, बीते सीजन में साल 2021 की तुलना में 7 लाख पेटी कम सेब उत्पादन हुआ।
साल 2022 में जब सेब के अधीन क्षेत्र बढ़कर लगभग 1,20,144 हैक्टेयर हो गया, तो उत्पादन साढ़े तीन करोड़ पेटी से भी कम है। साल 2010 के बाद राज्य में कभी भी चार करोड़ पेटी सेब नहीं हुआ। इस बार भी सेब के लिए मौसम अनुकूल नहीं है। इससे आगामी दिनों में भी अच्छी फसल की संभावनाएं कम ही है।
कोल्ड स्टोर में रखे सेब और एमआईएस के तहत खरीदी गई उपज को मिलाकर 3.36 करोड़ पेटी में उत्पादन सिमट गया, जबकि 2021 में 3.43 करोड़ पेटी सेब हुआ था। चिंता इस बात की है कि सेब के अधीन क्षेत्र में हर साल इजाफा हो रहा है, लेकिन उत्पादन नहीं बढ़ पा रहा। वर्ष 2010 में जब सेब की फसल 1,01,485 हेक्टेयर क्षेत्र में थी, तो उस दौरान राज्य में रिकार्ड 5.11 करोड़ पेटी सेब हुआ था।
हिमाचल सरकार ने 2022 में मंडी मध्यस्थता योजना (एमआईएस) के तहत रिकाॅर्ड सेब खरीदा है। एचपीएमसी और हिमफैड के माध्यम से इस बार लगभग 76 हजार मीट्रिक टन (लगभग 38 लाख पेटी) सेब खरीदा है। इस योजना के तहत सरकार ने मात्र 10 रुपए प्रति किलो के हिसाब से सेब खरीदा है। इस रेट में बागवानों की उत्पादन लागत भी नहीं निकल पाती है।
सेब उत्पादन में कमी के अलग अलग कारण है। सबसे अहम कारण जलवायु परिवर्तन है। बीते कुछ सालों के दौरान फ्लॉवरिंग के दौरान बारिश-बर्फबारी और ओलावृष्टि से भी उत्पादन नहीं बढ़ पा रहा है। उत्पादन नहीं बढ़ने का दूसरा कारण बागवानों द्वारा हाई ग्रेडिंग करना यानी प्रति पेटी 30 से 42 किलो सेब भरना बताया। हाईकोर्ट के आदेशों पर 2010 के बाद सेब के बागीचे भी बहुत कटे हैं। इससे भी उत्पादन कम हुआ है।