करीब डेढ सौ साल पुराने हाथरस की’ हींग’ को जी आई टैग मिल गया है | हाथरस , उत्तर प्रदेश में है| एक जिला-एक उत्पाद के रूप में हाथरस की पहचान यहाँ के हींग के कारोबार की वजह से है | जी आई टैग मिलने से हाथरस की हींग की पहुँच व पहचान दूनिया के सभी देशों तक सहज होगी|
हाथरस की हींग की महक देश-विदेश तक है। खेदजनक पहलू यह है कि शहर में हींग की गुणवत्ता की जांच नहीं हो रही है। हींग को प्रदेश सरकार ने एक जिला-एक उत्पाद में भी शामिल कर लिया। हींग उद्यमियों की सोसायटी बन गई है। इसके बाद भी अभी तक हींग की प्रयोगशाला के लिए जगह नहीं मिली सकी है। इस कारण हींग को तैयार करने के बाद उसकी गुणवत्ता जांच के लिए उद्यमियों को आगरा, दिल्ली, अहमदाबाद जाना पड़ता है।
हाथरस में हींग की करीब 50 बड़ी और 100 छोटी फैक्टरी हैं। इस उद्योग से करीब 10 हजार लोग जुड़े हैं। यहां करीब 25 से 30 करोड़ रुपये का इस उद्योग का सालाना टर्न ओवर है। मार्केट में पांच हजार रुपये किलो से लेकर 28 हजार रुपये किलो तक की कीमत की हींग उपलब्ध है।हींग का कच्चा माल यहां अफगानिस्तान, ईरान, कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान आदि मुल्कों से आता है। इन देशोंं में हींग का दूध (एसफोइटीडा) मिलता है। वह दिल्ली और मुंबई के व्यापारियों के माध्यम से यहां आता है। उसके बाद यहां प्रोसेसिंग कर हींग तैयार की जाती है और उसके बाद उसकी दूर-दूर तक आपूर्ति होती है।