देश भर की मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी आ रही है। इससे खेतीबाड़ी में करीब 20 फीसदी तक उत्पादन घट गया है। सोलन के बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी के विशेषज्ञों की मिट्टी की जांच में यह खुलासा हुआ है। कृषि के लिए मिट्टी में पाए जाने नाइट्रोजन, पोटाश, सल्फर, जिंक और बोरान में कमी आ गई है। माना जा रहा है कि इससे धरती की उर्वरा शक्ति तो प्रभावित हो ही रही है, फसलों की उत्पादकता पर भी असर पड़ रहा है।
विशेषज्ञों की मानें तो मिट्टी की अच्छी सेहत के लिए 16 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इसमें कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन वातावरण और पानी से मिलते हैं।
जबकि नाइट्रोजन, पोटाश, सल्फर, जिंक, बोरान, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर, जिंक, आयरन, मैगनीज, कॉपर और क्लोरीन आदि अन्य स्रोतों से पूरे किए जाते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार 53 वर्ष बाद अब किसान 11 गुना अधिक उर्वरकों का प्रयोग करने लगे पड़े हैं। वर्ष 1969 में एक हेक्टेयर भूमि में 12.4 किलोग्राम खाद का प्रयोग होता था, लेकिन अब 137 किलोग्राम हेक्टेयर तक पहुंच गया है। वहीं इसके साथ कीटनाशकों की खपत भी हर वर्ष बढ़ रही है।
करीब 85 प्रतिशत मिट्टी में जैविक कार्बन (देसी खाद) की कमी है। इसके अलावा मिट्टी में सक्ष्म पोषक तत्वों की भी कमी है, अधिक मिट्टी बोरान, आयरन, सल्फर और जिंक की कमी देखी जा रही है।
साल दर साल घट रहे पोषक तत्व, लग रहे रोग
नौणी विवि की मिट्टी जांच की आधुनिक प्रयोगशाला में प्रदेश के हिस्सों में करवाए गए मृदा परीक्षण में साल दर साल पोषक तत्वों की कमी दर्ज की जा रही है। यह कमी जीवांश कार्बन, सल्फर और जिंक सूक्ष्म पोषक तत्व में पाई जा रही है। जिंक की कमी से धान, गेहूं, आलू, मक्का, गोभी, सेब आदि फसलों को झुलसा और खैरा रोग लग जाता है। जिंक, आयरन, कॉपर, मैग्नीज, बोरान, क्लोरीन की फसल और पौधों की वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
बोरान की कमी होने पर धान और गेहूं की फसल में बालियां तो लग जाती हैं, लेकिन इसमें दाने नहीं पड़ते हैं। पोषक तत्वों की कमी फसल चक्र न अपनाना, गोबर, हरी खाद, वर्मी कंपोस्ट के प्रयोग में कमी सहित मुख्य कारण मृदा परीक्षण करवाए बिना अंधाधुंध उर्वरकों का इस्तेमाल करना पाया जा रहा है।