आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में चन्द्रशूर के बीज का टूटी हड्डी को जोड़ने, पाचन प्रणाली तथा मन को शांत करने, श्वास संबंधी रोगों, सूजन, मांसपेशियों के दर्द आदि में प्रयोग किया जाता है। हिसार के चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में विकसित की गई औषधीय फसल चन्द्रशूर की उन्नत किस्म एचएलएस-4 पूरे देश विशेषकर उत्तरी हिस्से में खेती के लिए अनुमोदित की गई है।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर काम्बोज के अनुसार भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के उप महानिदेशक (फसल विज्ञान) डॉ. टीआर शर्मा की अध्यक्षता वाली फसल मानक, अधिसूचना एवं फसल किस्म अनुमोदन केन्द्रीय उप समिति द्वारा चन्द्रशूर की इस किस्म को समस्त भारत विशेषकर उत्तरी भारत (हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और पश्चिमी उत्तर प्रदेश) में खेती के लिए जारी किया गया है।
इस औषधीय वनस्पति जिसको असारिया, आरिया, हालिम आदि नामों से भी जाना जाता है, को उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात तथा मध्य प्रदेश में व्यवसायिक स्तर पर उगाया जाता है। लेकिन चन्द्रशूर की एचएलएस-4 किस्म के विकसित होने से हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर के किसान भी इसकी खेती कर सकेंगे। उन्होंने बताया कि इस वनस्पति का औषधी के रूप में प्रयोग होने वाला मुख्य भाग इसका बीज है। राष्ट्रीय स्तर पर एचएलएस-4 किस्म के बीज की पैदावार 10.58 प्रतिशत जबकि उत्तरी भाग में 30.65 प्रतिशत अधिक दर्ज की गई है। इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 306.71 किलोग्राम तेल प्राप्त होता है जोकि चन्द्रशूर की प्रचलित जी ए 1 किस्म के लगभग समान (306.82 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) है।
चन्द्रशूर की यह किस्म हकृवि के औषधीय, सगंध एवं क्षमतावान फसल अनुभाग के वैज्ञानिकों डॉ. आईएस यादव, डॉ. जीएस दहिया, डॉ. ओपी यादव, डॉ. वीके मदान, डॉ. राजेश आर्य, डॉ. पवन कुमार, डॉ. झाबरमल सुतालिया और डॉ. वंदना की मेहनत का परिणाम है। कुलपति ने इन वैज्ञानिकों को बधाई दी और औषधीय पौधों की उन्नत प्रौद्योगिकी के विकास के लिए प्रयास जारी रखने को कहा।