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मैदानी इलाको में अच्छी पैदावार के लिए मक्का की किस्में

मक्का आज उद्योग जगत में भी अपना स्थान बना चुकी है। स्टार्च, अल्कोहल, एसिटिक व लेक्टिक एसिड, ग्लूकोज, रेयान, गोंद (लेई), चमड़े की पालिश, खाद्यान्न तेल (कार्न ऑइल), पेकिंग पदार्थ आदि में इस्तेमाल की जाने लगी है।

मानव एवं पशु आहार मक्का का पौधा मेक्सिकन मूल का माना जाता है। इसकी खेती देश के सभी प्रांतों में की जाती है। इसके लिए गर्म तर मौसम उपयुक्त होता है। खरीफ के साथ ही इसकी मुख्य फसल ली जाती है। वैसे जायद व वसंत में भी इसे उगाया जाता है। फसल नहीं देने पर इसे पशु चारे के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। तेज सर्दी के दिन छोड़कर किसी भी माह में उगाया जा सकता है। यह अधिक उपज देने वाली फसल है।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली में मक्का पर अनुसंधान कर कई किस्में तैयार की गई हैं। इनमें गंगा सफेद-2 देश के मैदानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। इसे पकने में 100 दिन लगते हैं। सफेद दाने वाली यह किस्म 60 क्विंटल तक उपज देती है। गंगा-5 किस्म के दाने नारंगी पीले होते हैं जो 95 दिनों में पकते हैं। इससे 45 से 50 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज मिल सकती है।

इसके अलावा पीले दाने वाली विजय किस्म 95 से 105 दिन में पकती है। इससे प्रति हैक्टेयर 45 से 50 क्विंटल उपज मिल जाती है। ये सभी संकर (हाईब्रिड) किस्में हैं। हर वर्ष इनका नया बीज बोना होता है।

जून-जुलाई में बोई फसल 45 दिनों में पूर्ण विकसित होकर 50 से 60 दिनों में भुट्टे देने लग जाती है। इसके लिए गहरी काली, उपजाऊ जीवांशयुक्त मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी का पीएच मान 6.5 से लेकर 7.5 के बीच अच्छा होता है। ऐसी मिट्टी न क्षारीय होती है न अम्लीय।

खेत की तैयारी एक बार मिट्टी पलटने वाला हल, दो बार कल्टीवेटर, दो बार पांस वाला बखर तथा दो बार पाटा (पठार) चलाकर की जाती है। खेत समतल या हल्का सा ढालू होना आवश्यक है ताकि पानी जमा न हो। खेत में 72 घंटे पानी रुकना फसल के लिए हानिकारक हो सकता है।

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