उत्तर प्रदेश में लखनऊ और कानपुर के बीच एक जिला है- उन्नाव | गंगा नदी इसकी दहलीज़ को छूकर बहती है| किसान गंगा के आंगन में जायद की फ़सले उगाते हैं |
गंगा के किनारे के बावजूद गरमी किसान के साथ उनकी फ़सल को भी झुलसा रही है| किसान को अब अपनी उपज की लागत भी निकलती नज़र आ रही है |
उन्नाव के किसानों ने गंगा में खीरा, खीरा, खरबूजा, तरोई, लौकी, करेला और कद्दू की खेती की है| लेकिन गर्मी बढ़ने के साथ ही किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही हैं| इन जायद फसलों पर चिलचिलाती धूप का गहरा असर पड़ा है। दरअसल, शुक्लगंज, परियार, उन्नाव समेत गंगा के कटरी क्षेत्र में किसानों ने जायद की सैकड़ों बीघा फसल बोयी है| अभी तक किसान यही सोच रहे थे कि इस बार अच्छी पैदावार होगी और वे लागत से अधिक कमा सकेंगे, लेकिन अप्रैल में सभी झुलसी धूप में झुलस गए हैं| अब किसान परेशान हैं।
गंगा की रेत में खेती करने वाले किसान फसल बचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं, लेकिन सफलता नहीं मिल रही है| रहमतुल्लाह का कहना है कि उन्होंने गर्मी से बचाने के लिए खेतों में पानी डाला था, लेकिन अभी 2 दिन भी नहीं हुए हैं, जब फसलों का पानी सूखने लगा है| उनका कहना है कि फरवरी-मार्च में मौसम ठीक था और फसलें हरी दिख रही थीं। ऐसे में उम्मीद थी कि अच्छी पैदावार होगी, लेकिन अचानक इस तरह से गर्मी का तापमान बढ़ने से सभी की ख्वाहिशें धराशायी हो गईं| अप्रैल की चिलचिलाती धूप ने फसलों को समय से पहले ही झुलसा दिया है।
किसानों का कहना है कि अगर धूप ऐसे ही चलती रही तो जो फसल बची है वह भी झुलस जाएगी। जायद की फसलों पर हजारों रुपये का निवेश किया गया है। ऐसे में अब खर्च निकालने की चिंता सता रही है।