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जैविक खेती के मामले में सबसे पिछड़ा सूबा है पंजाब

जैविक खेती की चर्चा के बीच अगर जागरूक किसानों वाले पंजाब की बात करें तो यह सुबह इस मामले में सबसे पीछे है| देश के सभी राज्यों में पंजाब में भागीदारी गारंटी प्रणाली (पीजीएस इंडिया) के तहत जैविक खेती करने वाले सबसे कम 262 किसान हैं। वहीं नैशनल प्रोग्राम फॉर ऑर्गेन‍िक प्रोडक्‍शन के तहत सिर्फ 367 क‍िसानों ने रज‍िस्‍ट्रेशन कराया है। यह आंकड़ा केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने संसद के मौजूदा सत्र में साझा किया।

केंद्रीय कृषि मंत्री ने बताया क‍ि देश में कुल 11.92 लाख किसान पीजीएस इंडिया के तहत ऑर्गेन‍िक खेती कर रहे हैं। 16.02 लाख ने एनपीओपी के तहत ट्रेसनेट में पंजीकरण कराया है।

उत्तराखंड में पीजीएस इंडिया योजना के तहत जैविक खेती करने वाले सबसे अधिक 3.01 लाख किसान हैं। इसके बाद राजस्थान में 1.70 लाख से अधिक और उत्तर प्रदेश में 1.63 लाख से अधिक किसान हैं। देश में जैविक या जैव-इनपुट आधारित जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए 650 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है।

श्री तोमर ने लोकसभा को बताया कि केंद्र सरकार किसानों के बीच रासायनिक मुक्त खेती को बढ़ावा देने और लोकप्रिय बनाने के लिए परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) और पूर्वोत्तर क्षेत्र में मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट (एमओवीसीडीएनईआर) की समर्पित योजनाओं को लागू कर रही है। इन योजनाओं के तहत क्लस्टर निर्माण, किसानों को प्रशिक्षण, जैविक इनपुट खरीद, खेत पर तैयारी, मार्केटिं सहित फसल कटाई के बाद प्रबंधन के लिए सहायता प्रदान की जाती है।

उन्होंने कहा कि किसानों को पीकेवीवाई के तहत तीन साल के लिए 31,000 रुपये प्रति हेक्टेयर और जैविक खाद सहित अलग-अलग जैविक खेती के लिए तीन साल के लिए 32,500 रुपये प्रति हेक्टेयर की सब्सिडी प्रदान की जाती है। केंद्र कृषि वेस्‍ट और पशु गोबर का उपयोग करके पारंपरिक या प्राकृतिक स्वदेशी प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए 2020-21 से पीकेवीवाई की उप-योजना के रूप में भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (बीपीकेपी) को भी लागू कर रहा है।

उन्होंने कहा कि किसानों को पीकेवीवाई के तहत तीन साल के लिए 31,000 रुपये प्रति हेक्टेयर और के तहत जैविक खाद सहित अलग-अलग जैविक खेती के लिए तीन साल के लिए 32,500 रुपये प्रति हेक्टेयर की सब्सिडी प्रदान की जाती है। केंद्र कृषि वेस्‍ट और पशु गोबर का उपयोग करके पारंपरिक या प्राकृतिक स्वदेशी प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए 2020-21 से पीकेवीवाई की उप-योजना के रूप में भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (बीपीकेपी) को भी लागू कर रहा है।

यह योजना मुख्य रूप से सिंथेटिक रासायनिक आदानों के बहिष्कार पर जोर देती है और बायोमास मल्चिंग, गाय के गोबर-मूत्र फॉर्मूलेशन के उपयोग और अन्य पौधे-आधारित तैयारियों पर प्रमुख तनाव के साथ ऑन-फार्म बायोमास रीसाइक्लिंग को बढ़ावा देती है। बीपीकेपी के तहत क्लस्टर निर्माण, क्षमता निर्माण और प्रशिक्षित कर्मियों की ओर से लगातार हैंडहोल्डिंग, प्रमाणीकरण और अवशेष विश्लेषण के लिए तीन साल के लिए प्रति हेक्टेयर 12,200 रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। हिमाचल प्रदेश सहित आठ राज्यों में बीपीकेपी के तहत 4.09 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर किया गया है।

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