अंतरराष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान (IRRI) ओडिशा सरकार के कृषि एवं किसान सशक्तिकरण विभाग (DAFE) और मिशन शक्ति विभाग (DMS) के साथ मिलकर राज्य में एक विशेष मिनी-फैक्ट्री स्थापित करेगा। इस पहल का उद्देश्य महिलाओं द्वारा संचालित स्वयं सहायता समूहों (WSHGs) को चावल मूल्यवर्धन (Rice Value Addition) के क्षेत्र में प्रशिक्षित करना, उन्हें बुनियादी ढांचे और बाज़ार तक पहुंच प्रदान करना है, जिससे वे कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स (Low-GI) और उच्च प्रोटीन वाले चावल का उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन कर सकें। साथ ही, ओडिशा की पारंपरिक चावल किस्मों को उच्च-मूल्य वाले चावल किस्मों को उच्च-मूल्य वाले उत्पादों में बदलकर उद्यमिता और आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जाएगा।
इस परियोजना “स्वयं सहायता समूहों द्वारा चावल मूल्यवर्धन के माध्यम से उद्यमिता को बढ़ावा” के तहत आयोजित पहली बैठक में प्रमुख हितधारकों ने भाग लिया। इसमें कृषि विभाग, मिशन शक्ति, IRRI, ICAR, APEDA और अन्य प्रमुख शोध व शैक्षणिक संस्थानों के वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया। इसके अलावा, निजी क्षेत्र के हितधारकों जैसे चावल मिलर्स, खाद्य प्रसंस्करण कंपनियों और कृषि व्यवसाय क्षेत्र के विशेषज्ञों ने भी भाग लिया, ताकि चावल आधारित उद्यमिता और मूल्य श्रृंखला (Value Chain) को मजबूत करने के अवसरों पर चर्चा की जा सके।
बैठक में ओडिशा सरकार के कृषि एवं किसान सशक्तिकरण विभाग के प्रधान सचिव डॉ. अरविंद पदही, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक और APEDA के सचिव डॉ. सुधांशु ने वर्चुअली संबोधित किया।
कार्यक्रम में बोलते हुए डॉ. अरविंद पदही ने कहा कि ओडिशा की पारंपरिक चावल किस्मों में अपार संभावनाएं हैं और यह पहल ग्रामीण उद्यमिता को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाएगी। उन्होंने कहा, “किसानों की आय बढ़ाने और राज्य की कृषि क्षमता को पूरी तरह से इस्तेमाल करने के लिए मूल्यवर्धन आवश्यक है। इस पहल के माध्यम से हम महिला स्वयं सहायता समूहों, किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) और कृषि उद्यमियों को मजबूत बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”
उन्होंने आगे कहा कि ओडिशा की खास चावल किस्मों को IRRI के अनुसंधान और मूल्य श्रृंखला विकास विशेषज्ञता के साथ जोड़कर हम कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स (Low-GI) और उच्च-प्रोटीन युक्त चावल को पोषण से भरपूर उच्च-मूल्य वाले उत्पादों में बदलेंगे। इससे न केवल किसानों की आय में वृद्धि होगी बल्कि खाद्य सुरक्षा भी मजबूत होगी और ओडिशा को चावल आधारित सतत कृषि उद्यमों के केंद्र के रूप में स्थापित किया जा सकेगा। ,
कार्यक्रम की शुरुआत में IRRI की महानिदेशक डॉ. यवोन पिंटो का एक वीडियो संदेश प्रसारित किया गया, जिसमें उन्होंने इस परियोजना के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “यह परियोजना केवल चावल तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अवसर निर्माण, आजीविका सशक्तिकरण और छोटे किसानों, महिलाओं और उद्यमियों को सफलता की ओर ले जाने की पहल है। IRRI, वैज्ञानिक अनुसंधान और पारंपरिक ज्ञान को एकीकृत कर चावल मूल्यवर्धन को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है, जिससे बेहतर पोषण और सतत आर्थिक वृद्धि सुनिश्चित हो सके।”
संस्थान में अनाज गुणवत्ता और पोषण केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. नेसे श्रीनिवासुलु, जो इस परियोजना का नेतृत्व कर रहे हैं, ने परियोजना के उद्देश्यों और अपेक्षित परिणामों की विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि Low-GI चावल न केवल स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है, बल्कि यह किसानों को प्रीमियम मार्केट तक पहुंच दिलाकर उनकी आय बढ़ाने में मदद कर सकता है।
उन्होंने कहा, “कुपोषण और गैर-संचारी रोगों (NCDs) की बढ़ती समस्या के समाधान के लिए उच्च-प्रोटीन और पोषण से भरपूर चावल की मांग तेजी से बढ़ रही है। सरकारी, शोध संस्थानों और निजी क्षेत्र के सहयोग से हम इस उत्पादन और आपूर्ति को व्यापक स्तर तक बढ़ा सकते हैं।”
इस अवसर पर परियोजना के रोडमैप दस्तावेज का विमोचन किया गया, साथ ही ओडिशा एग्रो इंडस्ट्रीज कॉर्पोरेशन (OAIC) द्वारा भुवनेश्वर में प्रस्तावित मिनी-फैक्ट्री का 3D मॉडल भी प्रस्तुत किया गया। यह अत्याधुनिक प्रसंस्करण केंद्र एक प्रशिक्षण और व्यवसाय इनक्यूबेशन हब के रूप में कार्य करेगा, जहां महिला स्वयं सहायता समूहों को चावल प्रसंस्करण, पोषण युक्त उच्च गुणवत्ता वाले खाद्य उत्पाद बनाने, पैकेजिंग, ब्रांडिंग और विपणन की ट्रेनिंग दी जाएगी।
कार्यक्रम के दौरान तकनीकी सत्र भी आयोजित किए गए, जिनमें उद्यमिता विकास रणनीतियों, विपणन चैनलों को अधिक कुशल बनाने और चावल आधारित उत्पादों को ब्रांडिंग के माध्यम से अधिक लाभदायक बनाने पर चर्चा की गई। इस दौरान महिला स्वयं सहायता समूहों और किसान उत्पादक कंपनियों (FPCs) ने भी अपने अनुभव साझा किए और चावल मूल्य श्रृंखला में अपनी भागीदारी पर अपने विचार रखे।