भारत में राजस्थान को रेतीले के रूप में पहचाना जाता है। लेकिन अब अनार के फलों ने रेतीले इलाके की रंगत हीं बदल दी है। अकेले जोधपुर संभाग में करीब 12 हजार हेक्टेयर से अधिक ज़मीन पर अनार की बागवानी ने किसानों के घर खुशियों से भर दिए हैं। राजस्थान में जोधपुर और बीकानेर जैसे में इलाके कभी बूंद बूंद पानी के लिए तरसते थे।
एकदम रेतीले बाड़मेर जिले के भीमड़ा, चौहटन, जालीपा, उण्डू, बाखसार, गुड़ामालानी, रामजी का गोल इलाके हैं। इसी तरह बालोतरा जिले के बुड़ीवाड़ा, पादरू, समदड़ी, सिवाना, मोकलसर सहित कई गांवों के किसान अनार से अच्छा मुनाफा कमा रहे है। यहां यह उल्लेखनीय है कि बालोतरा इलाके में देश में सबसे ज्यादा पापलीन कपड़ों को तैयार किया जाता है।
अनार की खेती करना मुनाफे के साथ-साथ चुनौतियों से भरा हुआ है। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक अनार की खेती करने वाले किसानों को 40 रुपए में पौधा मिल जाता है, लेकिन उसके बाद उसकी असली मेहनत शुरू होती है। किसान को 3 साल तर पौधे की देखभाल करनी होती है। 3 साल तक फसल के लिए इंतजार में बूंद-बूंद सिंचाई से उसको देखना पड़ता है, तब जाकर उसकी उम्मीदों की फसल होती है। एक पौधा कम से कम 25 सालों तक फल देता है।
राजस्थान में अनार की पैदावार नए रेकॉर्ड कायम कर रही है। अनार के दाने की गुणवत्ता और मिठास के बूते यूरोपीय और खाड़ी देशों से इसकी डिमांड देखने को मिल रही है। किसानों और निर्यातकों के बीच में सम्पर्क करवाने में एपीडा अहम भूमिका निभाती है। इससे फलों की पहुंच विदेशों में भी हो गई है। यहां से अनार के दाने यूएस निर्यात हो रहे हैं।
वर्ष 2010 से बाड़मेर जिले में अनार की खेती शुरू हुई थी। प्रदेश में अनार की खेती करीब 11 हजार हेक्टेयर में की जा रही है तथा इसका उत्पादन 77 हजार मीट्रिक टन हुआ है। प्रदेश के 90 प्रतिशत क्षेत्रफल बाड़मेर और जालोर जिले में है। इन क्षेत्रों का अनार नरम बीज, भगवा रंग, काफी दिनों तक यह खराब नहीं होता है, इन्हीं गुणों के कारण यहां का अनार अन्य राज्यों की अपेक्षा अधिक गुणवत्तायुक्त है।
जिले में भूजल के गिरते स्तर के कारण पानी की बढ़ती क्षारीयता व कम उपलब्धता इस परिस्थिति के अनुकूल होने के चलते किसानों का अनार की बागवानी की ओर रुझान बढ़ा है। अनार के पौधों में ड्रिप प्रणाली से पानी देने, अन्य फ सलों की अपेक्षा कम पानी की आवश्यकता के चलते व हल्के क्षारीय पानी मे भी उत्पादन देने के गुण के कारण पश्चिमी राजस्थान के किसानों का रुझान अनार की ओर बढ़ा है।