गुजरात के कच्छ जिले की देसी खारेक (छुआरा यानि खजूर) को भौगोलिक संकेत ( जीआई) टैग मिला है। गुजरात का यह तीसरा ऐसा कृषि उत्पाद है, जिसे जीआई टैग मिला है। इससे पहले गुजरात के प्रसिद्ध गिर के केसर आम और भालिया क्षेत्र के गेहूं के बीज को भी जीआई टैग मिल चुका है। सबसे अहम बात यह है कि देश में सबसे पहले खारेक (खजूर) की खेती गुजरात के कच्छ जिले में ही 425 साल पहले शुरू हुई थी।
कच्छ जिले में 19,251 हेक्टेयर क्षेत्र में 1,82,884 मैट्रिक टन उत्पादन के साथ मुंद्रा, मांडवी, भुज और अंजार तहसील खारेक (खजूर) की खेती में अग्रणी तहसील हैं। कच्छ की खारेक को सूखा मेवा के रूप में पहचाना जाता है।
गुजरात ने खजूर उत्पादकों को सर्वोत्तम तकनीकी जानकारी से लैस करने के उद्देश्य से इजराइल की तकनीकी सहायता से कच्छ में खजूर उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किया है। सरकार खजूर के नए बागानों को भी बढ़ावा दे रही है, जिससे किसान उच्च तकनीक और जीआई टैग के साथ खजूर का उत्पादन करेंगे।
गुजरात के कृषिमंत्री राघव जी पटेल ने कहा कि देश में 425 साल पहले खारेक (खजूर) की खेती कच्छ जिले में शुरू की गई थी। 425 साल पहले मुंद्रा तहसील के ध्रब में देश में पहली बार खारेक (खजूर) की खेती तुर्क परिवारों ने शुरू की थी। इनके प्रतिनिधि, किसान अग्रणी हुसेनभाई तुर्क का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा। अब जब 425 साल बाद इस फसल को जीआई-टैग भौगोलिक संकेत मान्यता प्राप्त हुई है, इससे कच्छ की देसी खारेक की मांग अब वैश्विक बाजार में और बढ़ेगी। इसे अधिक सम्मान मिलेगा। निर्यात बढ़ेगा। कच्छ देसी खारेक जीआई-टैग मान्यता प्राप्त करने वाला रेगिस्तानी क्षेत्र कच्छ का पहला कृषि उत्पाद बन गया।
कच्छ जिले की देसी खारेक (छुआरा यानि खजूर) को भौगोलिक संकेत ( जीआई) टैग मिला है। गुजरात का यह तीसरा ऐसा कृषि उत्पाद है, जिसे जीआई टैग मिला है। इससे पहले गुजरात के प्रसिद्ध गिर के केसर आम और भालिया क्षेत्र के गेहूं के बीज को भी जीआई टैग मिल चुका है। सबसे अहम बात यह है कि देश में सबसे पहले खारेक (खजूर) की खेती गुजरात के कच्छ जिले में ही 425 साल पहले शुरू हुई थी।