tag manger - जाड़े में दुधारू पशुओं की देखभाल और चारा प्रबंधन – KhalihanNews
Breaking News

जाड़े में दुधारू पशुओं की देखभाल और चारा प्रबंधन

नवम्बर से फरवरी महीने तक तेज़ सर्दी। पड़ती है । सर्द हवाओं और विपरीत प्रभाव वाले मौसम में पशुओं की देखभाल की जरूरत होती है। दुधारू पशुओं की सही देखभाल न की जाये तो दुग्ध उत्पादन पर असर पड़ता है।

सर्दियों में पशुओं को ठंड से बचाव हेतु आवश्यक देखभाल के लिए समुचित उपाय अपनाया जाना आवश्यक है। पूर्ण उत्पादन प्राप्त करने के लिए सर्दियों में पशुओं को ठंड से बचाना अत्यावश्यक है। यदि पशु को ठंडी हवा व धुंध/ कोहरा से बचाव का समुचित प्रबंध ना हो तो पशु बीमार पड़ जाते हैं, जिससे उनके उत्पादन क्षमता में तो गिरावट आती ही है साथ ही साथ पशु न्यूमोनिया जैसे रोगों के कारण मृत्यु को भी प्राप्त कर सकते हैं।

पशुपालकों को चाहिए कि वह अपने पशुओं का सर्दी के मौसम में विशेष ध्यान रखें तथा उन्हें सर्दी से बचाने के निम्नलिखित उपाय करें:-
पशुशाला के दरवाजे खिड़कियां व अन्य खुले स्थान पर रात के समय बोरी, त्रिपाल व टाट को टांगना चाहिए जिससे पशुओं को सीधी ठंडी हवा से बचाया जा सके।
रात के समय पर पशुशाला के फर्श पर पराली या भूसा को बिछाएं जिससे फर्श से सीधी ठंड पशुओं को न लगे।
पशुशाला का फर्श ढलान युक्त होना चाहिए जिससे पशुओं का मूत्र बहकर निकल जाए ताकि बिछावन सूखा बना रहे।
पशुओं को दिन के समय धूप में छोड़ें इससे पशुसाला का फर्श अथवा जमीन सूख जाएगा तथा पशु को गर्माहट भी मिलेगी।
पशु को ताजा व स्वच्छ पानी ही पिलाएं जो अधिक ठंडा ना हो।
नवजात बच्चों व बीमार पशुओं को रात के समय किसी बोरी या तिरपाल से ढक दें तथा सुबह धूप निकलने पर हटा दें।
पशुओं को हरे चारे विशेषकर वरसीम के साथ तूड़ी अथवा भूसा मिलाकर खिलाएं। रात के समय में पशुओं को सूखा चारा आहार के रूप में उपलब्ध कराएं।

सर्दी के प्रभाव से बचने हेतु दुधारू पशुओं की उर्जा की आवश्यकता बढ़ जाती है। इसे पूरा करने के लिए दुधारू पशुओं को प्रतिदिन एक किलोग्राम दाना मिश्रण इनके अन्य पोषण आवश्यकता के अतिरिक्त देना चाहिए। अत्यधिक दूध देने वाली पशुओं को सोयाबीन या बिनौले का इस्तेमाल करके राशन की उष्मा सघनता को बढ़ाया जा सकता है। इससे इन पशुओं का दुग्ध उत्पादन बना रहता है। पशुओं के पीने का पानी अक्सर अधिक ठंडा होता है जिसे पशु कम मात्रा में पीते हैं। इसलिए यह ध्यान रखा जाए कि पानी का तापमान बहुत कम नहीं हो। पशुओं को उनकी आवश्यकता अनुसार संतुलित आहार खिलाना चाहिए। पशुओं को हरा चारा उपलब्ध कराएं तथा 25-50 ग्राम खनिज मिश्रण एवं नमक भी चारे के साथ अवश्य देना चाहिये।

पशुओं को समय-समय पर रोग निरोधक टीके लगवाएं। बीमार पशुओं को स्वस्थ, पशुओं से अलग रखें तथा, नजदीकी कुशल पशु चिकित्सक द्वारा इलाज कराएं। पशुओं को आंतरिक परजीवीयों से बचाने के लिए समय-समय पर पशु चिकित्सक की सलाह पर क्रमी नाशक औषधि देनी चाहिए। वाहय परजीवीओं जैसे मच्छर, मक्खी, जुएं, किलनी अर्थात कलीली आदि की रोकथाम के लिए पशुशाला की सफाई के साथ-साथ पशु चिकित्सक के परामर्श पर बाहय परजीवी नाशक औषधियों, एंटीसेप्टिक, एंटीमाइक्रोबॉयल दवाइयों एवं डिसइनफेक्टेंट का छिड़काव करें।

About

Check Also

हर मौसम को सहने वाली गन्ने की चार नई किस्में देंगी ज्यादा पैदावार

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गन्ने की चार ऐसी किस्मों को जारी किया, जो किसी भी …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *