उत्तर भारत में 2.96 मिलियन हेक्टेयर भूमि ऐसी है जो लवणीय, क्षारीय, अम्लीय होने के कारण ऊसर है, जिसमें कोई फसल पैदा नहीं हो रही है। ऐसी भूमि पर गन्ने की फसल कैसे लहलहाए, इस पर करनाल स्थित क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र ( गन्ना प्रजनन केंद्र का उत्तर भारत का सबसे बड़ा अनुसंधान केंद्र) में शोध शुरू हो गया है। इसके लिए केंद्र में एक करोड़ रुपये की लागत से माइक्रो प्लॉट बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है, जिसमें देशभर के विभिन्न राज्यों में स्थित ऊसर बंजर भूमि की मिट्टी लाकर इस प्लॉट में सहेजी जाएगी। फिर उसमें गन्ने की विभिन्न प्रजातियों का परीक्षण किया जाएगा, जिस मिट्टी में जो फसल बेहतर होगी, उसकी पैदावार व गुणवत्ता को परखा जाएगा।
केंद्र के निदेशक डॉ. एसके पांडेय ने सोमवार को माइक्रो प्लॉट स्थल का निरीक्षण किया। करनाल स्थित केंद्रीय मृदा एवं लवणता अनुसंधान केंद्र (सीएसएसआरआई) में लंबे समय से लवणीय और क्षारीय भूमि के सुधार पर अनुसंधान हो रहा है। इसके तहत एक बड़े भू-भाग को सुधार भी लिया गया है, जहां फसलें लहलहा रही हैं। कई लवणरोधी गन्ने की किस्मों को भी ईजाद किया गया है, लेकिन अब गन्ना प्रजनन केंद्र के क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र में बिना मिट्टी को सुधारे ही उसमें गन्ने की फसल उगाने पर शोध शुरू हुआ है। यदि इसमें सफलता मिलती है| ये गन्ना उत्पादन में किसी क्रांति से कम नहीं होगा, क्योंकि इससे सीधे उसी भूमि में फसलों का उत्पादन किया जा सकेगा| यह जो सस्ता और सरल होगा।
गन्ने की ऐसी प्रजाति जो बंजर जमीन को उपजाऊ करेगी। इसे इस तरह से तैयार किया गया कि बंजर जमीन में भी आसानी से उग जाएगी। गन्ना प्रजनन संस्थान कोयंबटूर यह रिसर्च कर गन्ने की प्रजाति तैयार की है। हालांकि इस गन्ने में जूस कम है। लेकिन इसमें खोई (वेस्ट) ज्यादा निकलती है। यह बिजली टर्बाइन और कागज मिल के लिए खासी उपयोगी मानी जा रही है।