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नीलकंठ कुफरी आलू से अच्छी सेहत भी और अन्य आलू से अधिक पैदावार भी

भारत में किसानों के लिए सरकार द्वारा बहुत से अनुसन्धान केन्द्रों की स्थापना की गई है जो लगातार भारतीय जलवायु के अनुसार अनुसनधान कर किसानों के लिए लगातार कुछ नए उत्पाद तेयार करते हैं ताकि किसानों की कृषि में लागत कम हो उत्पादन अधिक एवं नुकसान न हो साथ ही उस उत्पाद से देश के सभी लोगों को कुछ न कुछ लाभ मिल सके | इस कड़ी में भाकृअनुप-केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला द्वारा आलू की नई किस्म विकसित की गई है जो किसानों के साथ साथ उसे खाने वाले के लिए भी फायदेमंद है | किसान समाधान इस किस्म की जानकारी लेकर आया है |

यह किस्म पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के मैदानी इलाकों, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और इसी तरह के कृषि पारिस्थितिकी राज्यों में खेती के लिए उपयुक्त है।

कुफरी नीलकंठ में कुफरी ललित, कुफरी लालिमा और कुफरी सिंधुरी नाम की प्रचलित किस्में हैं। यह किस्म उर्वरक के अनुकूल है और कृषिशास्त्रीय प्रथाओं के तहत 35-38 टन/हैक्टेयर उपज देने में सक्षम है। कुफरी नीलकंठ के फायदे आलू को अक्सर कार्बोहाइड्रेट युक्त जंक फूड के रूप में गलत माना जाता है, इसलिए ऑक्सीकरण रोधी के साथ जैव-सुदृढ़ीकरण द्वारा आलू को समृद्ध करना जरूरी है क्योंकि इस मामले में निश्चित रूप से उपभोक्ताओं के बीच इसका पोषण महत्त्व और लोकप्रियता स्थापित होगी।

देश में सबसे ज्यादा आलू उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है। देश के कुल उत्पादन में 32 फीसदी हिस्सेदारी उत्तर प्रदेश की है। यहां 2016-17 के सीजन में 15076.88 मिट्रिक टन आलू का उत्पादन हुआ था। सीपीआरआई के मुताबिक, भविष्‍य में आलू सब्‍जी से कहीं ज्‍यादा होगा, ये खाद्य सुरक्षा के तौर देखा जाएगा। 2050 तक आलू की मांग 125 लाख टन के करीब होगी।

नीलकंठ आलू की पैदावार में लागत सामान्य आलू के बराबर ही आती है. जबकि पैदावार उससे ज्यादा है। यदि मान लें कि सामान्य आलू की पैदावार 300 कुंटल होती है, तो नीलकंठ आलू की पैदावार लगभगा 400 कुंटल तक होगी। इस आलू के खेती करने में सबसे बड़ी फायदा यह है कि सामान्य आलू पर किसी भी रोग जैसे पानी गिरने से या किसी अन्य रोग से ग्रसित होने पर पैदावार में कमी हो जाती है, जबकि नीलकंठ आलू के पैदावार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

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