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आम की फसल के बाद बाग में अब मुर्गी पालन, हल्दी की खेती है लाभकारी

आम की फसल लेने के बाद खाली पड़े बागों में नई तकनीक का उपयोग करके हल्दी जैसे मसालों की उपज लेने और मुर्गी पालन करके अतिरिक्त आय अर्जित कर रहे हैं। ऐसा संभव हुआ है लखनऊ के केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान की मदद से जो आम के लिए मशहूर मलीहाबाद के किसानों को आम की फसल लेने के बाद उसमें आधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग कर गुणवत्तायुक्त हल्दी की फसल लेने और मुर्गी पालन कर अतिरिक्त आय अर्जित करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। कुछ प्रगतिशील किसान तो विदेशी सब्जियों की खेती करके और आफ सीजन सब्जियों के पौधे उगाकर अपनी आय बढ़ा रहे हैं।

संस्थान के निदेशक के अनुसार ‘फारमर्स फस्ट योजना ‘के तहत मलिहाबाद के चार गांवों का चयन किया गया है जिसमें करीब 2,000 किसान परिवार शामिल हैं। इन गांवों के किसानों में न केवल आर्थिक समृद्धि आई है बल्कि उनके आसपास के किसानों ने सफलता की नई कहानी भी लिखी है। इनमें मोहम्मदनगर तालुकदारी गांव शामिल है।

इस गांव के आम के बागों में अंतरवर्ती फसल लेने के लिए हल्दी की एक खास किस्म एनडी-2 का उच्च कोटि का बीज उपलब्ध कराया गया जिसमें करकुमीन की उच्च मात्रा है। इसके साथ ही इलीफेंट फूट याम राजेन्द्र किस्म का बीज भी दिया गया था जिसमें अल्कईड की निम्न मात्रा है। तीस किसानों को हल्दी और दस किसानों को इलीफेंट फूट याम का बीज दिया गया था। धीरे-धीरे 50 से अधिक किसान आम के बागों में इन दोनों फसलों की खेती करने लगे और अब यह गांव ‘प्रकंद बीज’ का हब बन गया है।

केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान बरेली के प्रधान शोधकर्ता मनीष मिश्र के अनुसार सबसे पहले उन्होंने आम के एक बाग में पोल्ट्री फार्मिंग तकनीक का प्रदर्शन किया और इसमें पोल्ट्री की विशेष किस्म कड़कनाथ और निर्भिक को पाला गया। धीरे-धीरे यह तकनीक जल्दी और नियमित आय के कारण लोकप्रिय होने लगी। अब तक चार गांवों के 100 से अधिक किसान इस पद्धति से पोल्ट्री फार्मिंग कर रहे हैं।

केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान में ‘फारमर्स फस्ट योजना’ के तहत नवी पनाह गांव के मोहम्मद शफीक को प्रशिक्षण दिया गया। उसे हेचरी के साथ कड़कनाथ और असील नस्ल का चूजा दिया गया। अब यह किसान मलीहाबाद, बाराबंकी, सीतापुर और अयोध्या के किसानों को चूजों की आपूर्ति कर रहा है। उसने पुराने रेफ्रिजरेटर को अपनी तकनीक से हेचरी में बदल दिया है। दूसरे किसान अब मोहम्मद शफीक से इस तकनीक को सीख रहे हैं।

ये किसान आफ सीजन सब्जियों के पौधे भी बेचने लगे हैं। केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक प्रभात कुमार शुक्ला के अनुसार मशरुम उत्पादन के लिए पहले से तैयार बैग किसानों में अधिक लोकप्रिय हो रहा है क्योंकि इससे उन्हें जल्दी आय प्रप्त होती है। संस्थान अनुसूचित जाति उपयोजना के तहत इस वर्ग के लोगों की अर्थिक स्थिति सुद्दढ़ करने का हरसंभव प्रयास कर रहा है।

संस्थान मलिहाबाद के किसानों का आर्थिक उत्थान संसाधानों के माध्यम से सशक्त करने के लिए एक अनूठी कार्यशाला का आयोजन यहां 23 अक्टूबर को करेगा। इस कार्यशाला में उच्च प्रौद्योगिकी के माध्यम से खेती कर रहे किसान संस्थान की ओर से चयनित किये गए किसानों को प्रशिक्षण देंगे। इस आयोजन में एक किसान दूसरे किसान से सफलता और विफलता की कहानी अच्छे तरीके से सुन और समझ सकेंगे। कृषि वैज्ञानिक किसानों को नई-नई तकनीकों से अवगत करा सकेंगे ।

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