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झारखंड : बाजार में आलू का संकट, दाम दुगने, उत्तर प्रदेश के आलू से बच रही रसोई की इज़्ज़त

पश्चिम बंगाल सरकार ने अपने यहां से दूसरे राज्यों में आलू भेजने पर रोक लगा दी है। इसके असर से झारखंड में आलू की किल्लत शुरू हो गयी है। इससे आलू की कीमत बढ़ने लगी है। देश में आलू का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश है। दूसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल और तीसरे स्थान पर बिहार है. झारखंड का स्थान सातवां है।

झारखंड आलू उत्पादन के मामले में टॉप-10 राज्यों में शामिल है। लेकिन, यहां के लोगों की जरूरत भी पूरी नहीं हो पाती है। मात्र चार माह ही झारखंड का आलू बाजार में रहता है। बाद में दूसरे राज्यों के आलू पर निर्भर होना पड़ता है। यहां के किसान साल में एक बार ही आलू की फसल ले पाते हैं। दिसंबर से मार्च-अप्रैल तक लोकल आलू निकलता है।

पिछले कुछ वर्षों से झारखंड का अपना आलू आने से पहले संकट हो जाता है। कीमत बढ़ जाती है। 15 दिसंबर के बाद से लोकल आलू आने के बाद कीमत गिरने लगती है। मई तक लोकल आलू मिलता है. फिर कीमत चढ़ने लगती है।

झारखंड में पूरे देश का करीब 1.26 फीसदी आलू का उत्पादन होता है। यहां 2022-23 में करीब 757 हजार टन आलू का उत्पादन हुआ था. पूरे देश में करीब 60141 हजार टन आलू का उत्पादन होता है। इसमें सबसे अधिक आलू का उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है। यहां 20126 हजार टन आलू का उत्पादन होता है उत्तर प्रदेश में देश का करीब 33 फीसदी आलू का उत्पादन होता है। दूसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल और तीसरे स्थान पर बिहार है। इस कारण झारखंड में बिहार, यूपी और प बंगाल से नियमित रूप से आलू आता है। बिहार में आलू दो से तीन बार लगाया जाता है। झारखंड में मुख्य रूप से हजारीबाग, रामगढ़, रांची, पलामू, कोल्हान के पोटक व पटमदा के साथ-साथ गोड्डा वाले इलाके में व्यावसायिक तौर पर आलू की खेती हो पाती है।

मिली जानकारी अनुसार झारखंड के किसान साल में एक बार ही आलू की फसल ले पाते हैं। यहां किसान अपनी खपत और कुछ बाजार में बेचने के लिए खेती करते हैं। राज्य में कोल्ड स्टोरेज की सुविधा अच्छी नहीं है। ऐसे में किसान ज्यादा उपज कर भी लेंगे, तो रखने की परेशानी होगी। दूसरा कारण यहां सिंचाई की सुविधा का नहीं होना भी है। यहां के किसान केवल खरीफ के समय आलू की खेती करते हैं। रबी में आलू नहीं लगाते हैं. आलू में चार-पांच पटवन की जरूरत होती है।

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