tag manger - मेले और कौथिग दे रहे पहाड़ी उत्पादों को ऊंची उड़ान – KhalihanNews
Breaking News
https://khalihannews.com/
https://khalihannews.com/

मेले और कौथिग दे रहे पहाड़ी उत्पादों को ऊंची उड़ान

व्योमेश चन्द्र जुगरान

पितृ पक्ष समाप्त होते ही राजधानी दिल्ली में जगह-जगह उत्तराखंडी रामलीलाएं और मेलों /कौथिगों की धूम मचने लगी है। इन कौथिगों में व्यापार मेले भी सजते हैं। दिल्ली में पहाड़ी उत्पादों के बाजार को ऊंची उड़ान देने में इन मेलों का महत्वपूर्ण योगदान है। पहाड़ की माटी में उगी खास तरह की दालें, साग-सब्जी, फल और पर्वतीय जीवन-शैली से जुड़ा अन्य सामान एक ही जगह पर उपलब्ध होने से लोग दूर-दूर से खरीदारी करने इन मेलों में पहुंचते हैं। यहां वे परस्पर मेल-मिलाप और उत्तराखंडी संस्कृति से जुड़े रंगारंग कार्यक्रमों का भी आनन्द लेते हैं।
मेला है तो ‘खेला’ भी होता है। कई बार यह पता नहीं चलता कि आप जो उत्पाद खरीद रहे हैं, वह पहाड़ी हैं भी कि नहीं और जिससे खरीद रहे हैं, वह उचित पात्र है कि नहीं। जब से पहाड़ी उत्पादों के प्रति ललक बढ़ी है, इस धंधे में बिचौलिये बहुत सक्रिय हो गए हैं। इनका जाल दिल्ली से लेकर देहरादून और पहाड़ी अनाज म‌ंडियों तक फैला हुआ है। मेलों/कौतिकों में प्राय: देखा गया है कि स्वयं सहायता समूहों के नाम पर लगे अनेक स्टॉलों का संबंध पर्वतीय सहकारिता से होता ही नहीं है। ये लोग कहीं से भी माल उठाकर उन सुविधाओं का फायदा उठा लेते हैं जो ऐसे मेलों में पहाड़ी उत्पादों और उत्पादकों को सरकार द्वारा दी जाती हैं। इन स्टॉलों का किराया उत्तराखंड सरकार का उद्योग विभाग भरता है। साथ ही, माल ढुलाई और विक्रेता के रहने व खाने का भी प्रबंध करता है।
मेलों के इन स्टॉलों को ह‌थियाने की होड़ करते अनेक दलाल आपको देहरादून के सियासी गलियारों में मिल जाएंगे। एक बार अर्जी मंजूर होने पर उनका यह आवंटन ऊंची बोली के साथ आसानी से आगे बिक जाता है। कई बार तो सौदा तीन-तीन हाथों से होकर मेले तक पहुंचता है। ऐसे अनेक फर्जी दलाल, एनजीओ व समितियां आपको मिल जाएंगी जिनका काम ही सरकारी खर्च पर मिलने वाले स्टॉल्‍स हथियाना और बैठे-ठाले कमीशनखोरी पर मौज उड़ाना है। अब यह कहना मुश्किल है कि मेले के आयोजकों की इस पूरे धंधे की भनक होती है या नहीं, मगर यह तो माना ही जा सकता है कि कौथिगों के जरिये कमाई के नए स्रोत फूटे हैं। लिहाजा आयोजकों की जवाबदेही तो बनती ही है।
असल में पहाड़ में सहकारिता को बढ़ाने के लिए ग्रामांचलों के स्वयं सहायता समूह बने हुए हैं। इनमें कुछ राज्य के उद्योग विभाग में पंजीकृत हैं और कुछ गैरपंजीकृत। कायदे से इन्हें पहाड़ी किसान को उसके घर पर ही उत्पाद का वाजिब दाम देकर खरीदारी करनी चाहिए। मगर ऐसा नहीं हो पाता। ये लोग किसानों से माल नहीं खरीदते, बल्कि इस ताक में रहते हैं कि कब और कहां जरूरत के अनुसार स्वयं सहायता समिति का नाम बेचा जाए और बैठे ठाले कमीशन खा लिया जाए। बाजार में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो इन समितियों के ठप्पे के साथ मेलों में पहुंचते जाते हैं। उनका माल कहां से आ रहा है और किस दर्जे का है, यह पता ही नहीं चलता। ग्राहक भी समिति का बैनर देख आसानी से झांसे में आ जाता है।

हालांकि कुछ लोग हैं जो अपने मेहनतकश स्वभाव से न सिर्फ पहाड़ों में खेती-किसानी को प्रोत्साहित कर रहे हैं, बल्कि व्यावसायिक कुशलता के मामले में भी अपना लोहा मनवा रहे हैं। ऐसे लोग यदि पहाड़ी उत्पादों का कारोबार अपनाने का जोखिम उठाते हैं तो उसके पीछे व्‍यावसायिक हित के साथ-साथ पर्वतीय हित चिन्‍तन का एक मिशनरी भाव भी होता है। ऐसे ही एक पर्वतीय हितचिन्‍तक ने इंदिरापुरम महाकौतिक में अपने स्टॉल से पहाड़ी दालों समेत करीब पांच क्विंटल माल बेचा। वह उत्तराखंड में पहाड़ के हर हिस्से में जाते हैं और वहां के खास उत्पाद को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। साथ ही, किसानों को इसे उगाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। वह कहते हैं कि उत्तराखंड में सरकारें यदि सही ढंग से पहाड़ी खेती को प्रोत्साहित करें और ठोस नीति बनाकर इन्हें जमीन पर उतारें तो वहां की मिट्टी में सोना उगाया जा सकता है।

सरकार ने समर्थन मूल्य इत्यादि तो घोषित किया है मगर इसका कोई लाभ किसानों को नहीं मिल पाता। समर्थन मूल्य पर खरीदना पर्वतीय हित चिन्‍तकों के वश में है भी नहीं क्योंकि सुदूर गांवों से माल को दिल्ली तक लाना और साफ-सफाई, पिसाई इत्यादि के बाद ग्राहक तक पहुंचाना सहज नहीं होता। हां, इतना अवश्य किया जा सकता है कि बिचौलियों से बचाने के लिए किसानों के समूह बना दिए जाएं और सीधे उन तक पहुंचकर सामान खरीदा जाए। इसका फायदा यह होगा कि उन्हें अपने उत्पादों के काफी अच्‍छे दाम मिलने लगेंगे। इससे बिचौलियों का बाजार खराब होगा और उत्‍पादक और हितचिन्‍तक आपसे में मिलकर बेहतर मूल्‍य प्रबंधन कर सकेंगे। यदि ऐसा हो सका तो पहाड़ में खेती-किसानी को नए सिरे से जिन्दा कर व्यावसायिक बाना पहनाया जा सकेगा। लेकिन जरूरी है कि इस दिशा में कार्य कर रहे हितचिन्‍तकों को सरकार की ओर से प्रोत्साहन मिले और सरकारी व गैर सरकारी व्‍यापार मेलों में उनकी अधिकाधिक भागीदारी सुनिश्चित हो।

About khalihan news

Check Also

उत्तराखंड : किसानों की आय बढ़ाने के लिए 24 हजार पॉलीहाउस बना रही राज्य सरकार

उत्तराखंड : किसानों की आय बढ़ाने के लिए 24 हजार पॉलीहाउस बना रही राज्य सरकार

युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मुख्यमंत्री ने कहा कि किसानों को स्वरोजगार के साथ …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *