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उत्तर प्रदेश : बदायूं में बसपा मायावती बोलीं- सत्ता पक्ष और विपक्ष आपस में मिले हुए हैं, ये संविधान बचाने का नाटक कर रहे हैंकी वजह से भाजपा और सपा को कड़ी चुनौती

उत्तर प्रदेश : बदायूं में बसपा की वजह से भाजपा और सपा को कड़ी चुनौती

बसपा ने मुस्लिम कार्ड के रूप में जो सियासी चाल चली है, उससे बदायूं लोकसभा सीट के समीकरण बदल गए हैं। सपा और भाजपा के रणनीतिकार नफा-नुकसान का आकलन कर नए सिरे से चुनाव प्रबंधन करने में जुट गए हैं। अनुसूचित जाति के मतों में बिखराव रोकने लिए भाजपा ने इसी बिरादरी के पार्टी विधायकों को जिम्मेदारी सौंपी है। उधर, सपा के सामने मुस्लिम मतों को सहेजने की चुनौती है। बसपा भाईचारा कमेटियों को सक्रिय कर हर बिरादरी में पकड़ बनाने की तैयारी में है। बदायूं लोकसभा क्षेत्र से सपा ने सपा के दिग्गज नेता शिवपाल सिंह यादव के बेटे आदित्य यादव, भाजपा ने दुर्विजय सिंह शाक्य और बसपा ने पूर्व विधायक मुस्लिम खां को चुनावी रण में उतारा है। तीनों ही उम्मीदवार पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। तीनों ही अपनी पार्टियों के परंपरागत और स्वजातीय मतों के आधार पर बाजी मारने की जुगत में हैं। बसपा के दांव ने सबसे ज्यादा सपा के समीकरण प्रभावित किए हैं। बसपा से मुस्लिम खां के मैदान में आने से सपा को मुस्लिम मतों में बंटवारे का खतरा सता रहा है।

बसपा का उम्मीदवार घोषित होने से पहले तक करीब चार लाख मुस्लिम मतों पर सपा की ही सबसे मजबूत दावेदारी थी। अब जबकि बसपा ने मुस्लिम खां को चुनाव मैदान में उतार दिया है तो मतों के बंटवारे का अंदेशा पैदा हो गया है। इसको देखते हुए सपा नेतृत्व ने पूर्व केंद्रीय मंत्री सलीम इकबाल शेरवानी और पूर्व विधायक आबिद रजा को विभाजन रोकने के लिए सक्रिय कर दिया है।

मुस्लिम खां को उम्मीदवार बनाने से बसपा मुस्लिम मतों में हिस्सेदारी होने की उम्मीद है, लेकिन सवर्ण और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं में पैठ बनाना उसके लिए चुनौती है। बसपा जिलाध्यक्ष आरपी त्यागी कहते हैं कि बसपा हर वर्ग को जोड़ने के लिए भाईचारा कमेटियों का पहले ही गठन कर चुकी है। कमेटियों के जरिए ही सवर्ण और पिछड़ों के मत हासिल किए जाएंगे। अनुसूचित जाति के साथ मुस्लिम मतों को जुड़ाव बसपा की मजबूती का आधार है। जातिगत समीकरण साधकर ही बसपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उम्मीदवार उतारे हैं।

मोदी की गारंटी और हिंदुत्व को धार देकर चुनाव मैदान में उतरी भाजपा ने स्थानीय स्तर पर जातिगत समीकरणों को साधा है। पिछली बार भाजपा के टिकट पर संघमित्रा मौर्य चुनाव जीतीं थीं। अबकी बार इसी बिरादरी के दुर्विजय सिंह को उतारा गया है। शाक्य-मौर्य पिछड़ा वर्ग में आते हैं।

पिछड़ी के साथ सवर्ण मतदाताओं का झुकाव जहां भाजपा की मजबूती का आधार बताया जा रहा है, वहीं पार्टी के चुनावी रणनीतिकारों ने अनुसूचित जाति वर्ग के मतों को साधने के लिए बिसौली के सपा विधायक आशुतोष मौर्या की पत्नी और बहन को पार्टी में शामिल किया है। अनुसूचित जाति के कुछ और असरदार नेताओं को भाजपा में शामिल करने की तैयारी चल रही है।
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