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टिंडा की खेती : रसोई का स्वाद ही नहीं, किसान का मुनाफा भी

टिंडा की खेती साल में दो बार की जा सकती है। इसे फरवरी से मार्च और जून से जुलाई तक इसकी बुवाई कर सकते हैं।

टिंडा सब्जी की कई प्रसिद्ध उन्नत किस्में है। इनमेेंं टिंडा एस 48, टिंडा लुधियाना, पंजाब टिंडा-1, अर्का टिंडा, अन्नामलाई टिंडा, मायको टिंडा, स्वाती, बीकानेरी ग्रीन, हिसार चयन 1, एस 22 आदि अच्छी किस्में मानी जाती हैं। टिंडे की फसल आमतौर पर दो माह में पककर तैयार हो जाती है।

टिंडा सब्जी की बुवाई के लिए सबसे पहले खेत की ट्रैक्टर और कल्टीवेटर से अच्छी तरह से जुताई करके मिट्टी भुरभुरा बना लेना चाहिए। खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। इसके बाद 2-3 बार हैरो या कल्टीवेटर से खेत की जुताई करें। इसके बाद सड़े हुए 8-10 टन गोबर की खाद प्रति एकड़ प्रतिकिलो खाद के हिसाब से डालें।

टिंडे की बुवाई थालों में की जानी चाहिए। लाइन से लाइन की दूरी 2 से 2.5 मीटर व थालों से थालों की आपस की दूरी 1 से 1.5 मीटर रखते हैं। हर थाले में 4-5 बीज की बुवाई करनी चाहिए। बीजों के अंकुरण के बाद, केवल दो स्वस्थ पौधों को छोड़कर बाक़ी के पौधे उखाड़ देने चाहिए।

किसान साथियों टिंडा एक उथली जड़ वाली फ़सल है। इसमें सिंचाई की आवश्यकता अधिक होती है। टिंडे की फ़सल पर पहली सिंचाई अंकुरण के 5 से 8 दिन के अंदर करनी चाहिए। टिंडे में बौछारी विधि से सिंचाई करके फ़सल पर पहली निराई-गुड़ाई बुवाई के दो सप्ताह बाद करनी चाहिए। निराई के दौरान अवांछित खर पतवारों को उखाड़ दें । साथ ही पौधों की जड़ों में मिट्टी चढ़ा दें। अधिक खरपतवार की दशा में एनाक्लोर रसायन की 1.25 लीटर मात्रा को प्रति हेक्टेयर मात्रा का छिड़काव करना चाहिए।

टिंड़े के फल बनने के एक सप्ताह के अंदर तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है। पौधे छोटे व कोमल हों तुड़ाई कर लेनी चाहिए। अन्यथा कड़े फल हो जाने पर फल सब्ज़ी बनाने लायक नही रहते हैं। बाज़ार में उसका उचित मूल्य नही मिलता। इसलिए पहली तुड़ाई के 4 -5 दिन के अंतराल पर तुड़ाई करते रहना चाहिए।

आमतौर पर उन्नतशील टिंडे की खेती से 80-120 कुन्तल प्रति हेक्टेयर की पैदावार मिल जाती है।

 

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