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पंजाब के किन्नू किसानों की मदद में उतरा एग्री एक्सपोर्ट कॉरपोरेशन

पंजाब और राजस्थान के कुछ हिस्सों में किन्नू के बाग देश-विदेश में रसीले किन्नू मुहैया कराते हैं। इससे साल किन्नू फल की बंपर पैदावार हुई। बाग मालिकों को देख-रेख और तुड़वाने की लागत तक नहीं मिल रही है। किन्नू उत्पादन को बाजार से लेकर सरकार तक कोई राहत नहीं मिली। बांग्लादेश ने इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ा दी और भारत सबसे जाने वाले किन्नू की सप्लाई ररउक गयी।

आखिरकार पंजाब सरकार प्रदेश के किन्नू उत्पादक किसानों के समर्थन में उतरी है। राज्य में किन्नू उत्पादकों द्वारा अपनी फसल को औने-पौने दाम में बेचने और अपने बगीचों को उजाड़ने के चलते आखिरकार पंजाब एग्री एक्सपोर्ट कॉरपोरेशन ने फल खरीदने का निर्णय लेकर उनके बचाव में कदम उठाया है। मालवा क्षेत्र में किन्नू उत्पादक हताशा भरे कदम उठा रहे हैं, जिनमें किन्नू की कीमतें 5 रुपये प्रति किलो से ऊपर नहीं बढ़ने के बाद अपने बागों को उखाड़ना और गेहूं-धान की खेती में वापस जाना शामिल है। पिछले साल उन्हें 20-25 रुपये प्रति किलोग्राम की कीमत मिली थी।

इस साल किन्नू का उत्पादन 13.50 लाख मीट्रिक टन तक पहुंचने की उम्मीद है। पिछले साल यह 8 लाख मीट्रिक टन था। हालांकि अबोहर में राज्य निगम इस बार बहुत कम फूड प्रोसेसिंग के लिए किन्नू खरीदने का प्रयास कर रहा है। किन्नू तोड़ने और मार्केटिंग करने के लिए बागवानों के साथ बहुत कम कांट्रैक्ट हो रहा है। इतना ही नहीं, इस बार निगम किसानों को अपनी फसल तोड़ने और उपज बेचने के लिए नए बाजार खोजने में मदद के भी कम प्रयास हो रहे हैं।

राज्य निगम ने इस साल चार लाख लीटर किन्नू जूस बनाने का निर्णय लिया है. इसके लिए किन्नू की सोर्सिंग शुरू हो गई है। चूंकि किन्नू की क्वालिटी को लेकर कई मुद्दे हैं, इसलिए निगम ने जूस बनाने के लिए 5,000 टन सी और डी ग्रेड किन्नू खरीदने का फैसला किया है। अधिकारियों का कहना है कि हालांकि यह लो क्वालिटी वाला किन्नू आम तौर पर कुल उपज का 30 प्रतिशत होता है, लेकिन इस साल लो क्वालिटी वाला किन्नू कहीं अधिक प्रतिशत में है। बागवानों के साथ उनके किन्नू को तोड़ने और 10-11 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचने का कांट्रैक्ट भी किया है। अच्छी क्वालिटी वाले किन्नू को खुदरा में बेचा जाएगा, जबकि अन्य का उपयोग जूस बनाने के लिए किया जाएगा।

पंजाब के अबोहर से अभी हाल में खबर आई थी कि किन्नू किसान अपनी उपज को पांच रुपये किलो बेचने के लिए मजबूर हैं क्योंकि अधिक रेट नहीं मिल रहा है। इस रेट से नाराज किसानों ने अपने बागानों पर ट्रैक्टर चला दिया और बागों को बर्बाद कर दिया। किसानों की शिकायत है कि उनकी लागत भी नहीं निकल पा रही है तो इस तरह की बागवानी का क्या फायदा। किसानों ने कहा कि जब किन्नू से पैसे नहीं आ रहे तो वे फिर से गेहूं और चावल की खेती करेंगे।। जबकि सरकार ने किसानों को गेहूं-चावल के चक्र से निकालने के लिए किन्नू जैसी बागवानी फसलों को बढ़ावा दिया है।

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