सूबे के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में प्रजनन विधि द्वारा मक्का की नई किस्म विकसित की है। यह छत्तीसगढ़ में 85 दिनों में तैयार होने वाली मक्के की पहली किस्म बताई जा रही है। इससे पहले जानवरों के चारे के लिए मक्का विकसित किया गया था।
वैज्ञानिकों का कहना है, पहले प्रदेश में मक्के की कोई किस्म नहीं थी । किसान प्राइवेट कंपनी से महंगे दाम पर मक्का बीज खरीदते हैं। नई किस्म आने से अब किसानों को सरकारी दाम में बीज मिल पाएंगे। बीज की प्रमाणिकता की प्रक्रिया जारी है। इसके बाद पाएगा। किसानों को इसका लाभ मिल पाएगा।
मक्के की खेती करने वाले अधिकतर किसान दुकानों से लंबे समय में तैयार होने वाले बीज खरीदते हैं। कई बार मौसम के अनुरूप फसल नहीं होने से उन्हें नुकसान हो जाता है। जल्द फसल तैयार होने वाले बीजों की जानकारी किसानों को नहीं होती।
मक्के की नई किस्म 84 दिन में तैयार हो जाएगी। बाकी किस्म को 90 से 100 दिन लगते हैं। जल्द तैयार होने से फसल चक्र में क्रम सही बैठता है। नई किस्म का सरगुजा, दंतेवाड़ा व रायपुर में प्रयोग किया गया। सभी क्षेत्रों में सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं। प्रति हेक्टेयर 58 क्विंटल उत्पादन है, जो बाकी से 20 क्विंटल अधिक है।
छत्तीसगढ़ में मक्के की नई किस्म तैयार होने के पीछे वैज्ञानिक की 9 साल की कड़ी मेहनत है। दो जनक की ब्रीडिंग के बाद नई किस्म बनी है।इसमें पहला हैदराबाद से लाया गया, दूसरा वैज्ञानिकों ने स्वयं तैयार किया। इससे लंबा समय लगा। नई किस्म में बीमारियों से लड़ने की क्षमता है। खास बात यह, छत्तीसगढ़ की जलवायु के अनुकूल है।