उत्तर प्रदेश के विधानमंडल के दोनों सदनों में हुई भर्तियों को लेकर चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। इस घोटाले की गंभीरता को देखते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने स्वत: संज्ञान लेते हुए साल 2020-2021 में विधानसभा और विधान परिषद सचिवालय में हुई भर्तियों की सीबीआई जांच के आदेश दिए हैं।
भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार की नई इबारत रचने वाले इस भर्ती घोटाले में विज्ञापन में घोषित पदों से अधिक भर्तियां कर ली गईं। चहेतों को नौकरी देने के लिए गलत ढंग से अंकों में बदलाव किए गए। भर्ती परीक्षा कराने वाली एजेंसियों के निदेशकों के परिवार के सदस्य तक परीक्षा में पास हो गए।
विधानसभा-विधानपरिषद सचिवालय के अफसरों के अलावा शासन के कई अफसरों के परिजनों-नजदीकियों को नौकरी मिल गई। पर मेहनत करके प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले युवाओं के हिस्से मायूसी ही आई।
भर्तियों की इस बड़ी घपलेबाजी का स्वत संज्ञान लेते हुए इसे जनहित याचिका यानी पीआईएल के रूप में दर्ज करने के साथ ही सीबीआई जांच के आदेश दिए हैं। हाईकोर्ट ने शुरुआती जांच की रिपोर्ट 6 हफ्ते में पेश करने के लिए कहा। अदालत ने ये टिप्पणी भी की है कि सरकारी नौकरी में भर्ती के लिए प्रतियोगिता मूल नियम है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए भर्ती एजेंसियों की विश्वसनीयता बहुत ही जरूरी है। साथ ही पेश किए गए मूल रिकार्ड को सील कवर में रखने के आदेश दिए गए।images credit – google