भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) के वैज्ञानिकों ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर चन्द्रयान को उतारकर अंतरराष्ट्रीय विज्ञान जगत में तो ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की ही है। दक्षिणी ध्रुव पर जाने को लेकर उत्सुक पूरी दुनिया की एजेंसियों को भी पछाड़ दिया है। यह एक बेहद बड़ी कामयाबी है क्योंकि इसके जरिये चांद के सबसे कीमती संसाधनों तक पहुंचा जा सकता है।
चांद के दक्षिणी ध्रुव पर ऐसा क्या है जिसे लेकर पूरी दुनिया के अंतरिक्ष वैज्ञानिक होड़ में हैं? सबसे बड़ी बात है वहां पानी की मौजूदगी की संभावना. उस पानी के लिए यूरोप, रूस और अमरिका की अंतरिक्ष एजेंसियां ही नहीं बल्कि निजी कंपनियां भी चांद पर पहुंचना चाहती हैं। वहां एक कॉलोनी बनाने की संभावना दिखती है। आने वाले समय में मंगल पर जाने के लिए भी वह एक अहम अड्डा बन सकता है।
वर्ष 1960 के दशक में चांद पर अमेरिकी यान अपोलो के उतरने से पहले ही वैज्ञानिकों ने संभावना जाहिर कर दी थी कि चांद पर पानी हो सकता है। वर्ष 1960 और 1970 के दशक में अपोलो अभियान के जरिये चांद से मिट्टी के कई नमूने लाये गये. लेकिन वे सब सूखे थे और उनमें पानी नहीं था।
चांद पर जमे हुए रूप में जो पानी मौजूद है वो बर्फ की प्राचीन सिल्लियों के रूप में है। वैज्ञानिकों की उन सिल्लियों में खासी दिलचस्पी है क्योंकि उनमें चांद के ज्वालामुखियों के बारे में बेशकीमती जानकारी हो सकती है। उनमें वे पदार्थ हो सकते हैं जो उल्कापिंडों के जरिये पृथ्वी पर आये. और उस जानकारी में महासागरों के जन्म की कहानी भी छिपी हो सकती है।
चांद के दक्षिणी ध्रुव पर यान को उतारने में सफल रहने वाला भारत पहला देश है। इससे पहले बहुत से अभियान विफल रहे हैं। हाल ही में रूस ने अपना लूना-25 यान इसी मकसद से भेजा था लेकिन वह विफल हो गया था। अमेरिका का अपोलो अभियान भी ऐसा करने में विफल रहा था। 2019 में भारत का चंद्रयान भी वहां उतरने में विफल रहा था।
अब भी चीन और अमेरिका दक्षिणी ध्रुव पर अपने-अपने यान उतारने की कोशिशों में हैं। लेकिन भारत ने इस मामले में सबको पछाड़ दिया है।
साभार (रॉयटर्स, एएफपी)