व्योमेश चन्द्र जुगरान
वर्ष 1981 के बहुचर्चित गढ़वाल उपचुनाव के नायक एचएन बहुगुणा के बाद लोगों की जुबान पर जो दूसरा नाम था और जिसकी गूंज बीबीसी जैसे समाचार माध्यमों तक सुनाई दी थी, वह थी- कंडाली यानी बिच्छू घास। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लिए नाक की लड़ाई बन चुके इस उपचुनाव में कांग्रेस की शह पर पंजाब और हरियाणा से गढ़वाल भेजे गए ‘बूथ लुटेरों’ ने जब गांव-गांव फैलकर मतपेटियों को लूटने का सिलसिला शुरू किया तो गांव वालों ने उनकी धुनाई कंडाली के गुच्छों से की। पहाड़ के चप्पे-चप्पे पर उगने वाले इस जंगली झाड़ के आगे लुटेरों के लाठी-डंडे और अन्य हथियार धरे रह गए। वे बदन पर कंडाली की झपाक खाते ही सब कुछ छोड़कर भाग खड़े हुए। उनसे छूटे हथियार और लूटे गए मतपत्रों के अकाट्य सबूतों के कारण ही तत्कालीन निर्वाचन आयुक्त शकधर गणेशन को चुनाव रद्द कर नए सिरे से अधिसूचना जारी करनी पड़ी थी।
आखिर कंडाली की करामात का राज क्या था। जी हा, इस पौधे के तने और पत्तियों पर गहरी चुभन वाले असंख्य छोटे-बड़े कांटे पाए जाते हैं जो स्पर्श मात्र से मनुष्य के बदन किसी बिच्छू के डंक जैसा प्रहार करते हैं। इन कांटों में कई तरह के रसायन और एसिड पाये जाते है और मार यदि तेज हो तो बदन पर फौरन फफोले उग आते हैं। लेकिन यह पौधा जितना खूंखार है, औषधि और भेषज के लिहाज से उतना ही अनूठा भी। इसीलिए इसने वैज्ञानिकों का ध्यान अपनी ओर खींचा है और हाल के सालों में इस पर तमाम तरह के शोध हुए हैं। शोधों का ही परिणाम है कि आज कंडाली के रेसों से न सिर्फ रस्सियां, जूते, जैकेट और अन्य वस्त्र तैयार किए जा रहे हैं, बल्कि इसकी पत्तियां स्वादिष्ट रैसिपी और हर्बल चाय के रूप में ख्याति पा रहीं हैं। यहां तक कि उूंची कीमत वाली यह चाय विदेशों तक में निर्यात हो रही है। उत्तराखंड सरकार खासकर हर्बल चाय के लिए कुटीर उद्यम के रूप में कंडाली के उपयोग को बढ़ावा दे रही है। ऐसी चाय उत्पादन इकाइयां अपने उत्पाद लेकर बाजार में बेच रही हैं और उन्हें अच्छा मुनाफा हो रहा है। हालांकि अभी भी इस पौधे के बहुआयामी उपयोग को लेकर लोगों के बीच अपेक्षित उद्यमशीलता का अभाव है।
गांवों में स्थानीय निवासी अपनी आवश्यकता के अनुरूप कंडाली का पारंपरिक उपयोग करते आए हैं। इसकी पत्तियों और तनों को सुखाकर पशुचारे के लिए उपयोग किया जाता है। गांवों में लोग कंडाली की कोमल पत्तियों को साग के रूप में पकाकर खाते आए हैं। इसकी तासीर गर्म मानी जाती है, लिहाजा ठंड के मौसम में यह रोग प्रतिरोधक का काम करती है। इसकी जड़ का सत्त दर्द निवारक माना गया है और घावों की जल्द हीलिंग में भी कारगर है। खून की कमी जैसी रोगों को दूर करने में भी कंडाली की जड़ उपयोगी मानी जाती है।