मधुमेह यानी शुगर के मरीज़ो के लिए जामुन बहुत लाभकारी है| कोरोना – काल में बीते दो साल से यह स्थानीय बाजारों तक सीमित रहा| इस साल जामुन की फसल पर जलवायु-परिवर्तन की वजह से असर पड़ा है|
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन से जामुन के पेड़ों पर भरपूर फूल नहीं आये हैं| फूलों की बजाय नई पत्तियां आ गई हैं| आम के पेड़ों में भी जिस साल फूल नहीं आते ,उन पेड़ों पर नई टहनी में पत्तियां आ जाती हैं|
आबोहवा मे बदलाव के बावजूद जामुन बाजार को ‘जामवन्त’ की अच्छी आमद की उम्मीद है | जामुन की इस प्रजाति को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से सम्बद्ध केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ के वैज्ञानिकों ने करीब दो दशक के अनुसंधान के बाद ‘जामवंत‘ को तैयार किया है। जामुन की ‘जामवंत‘ वैरायटी में कसैलापन नहीं होता है और 90 से 92 प्रतिशत तक गूदा होता है। इसकी गुठली बहुत छोटी है। जामुन के विशाल पेड़ की जगह इसके पेड़ को बौना और सघन शाखाओं वाला बनाया गया है।
आम से कई गुना अधिक दाम में बिकने के बाद भी जामुन का व्यापार बहुत आसान नहीं है। यह पकने के बाद ही तुरंत खराब होने लगता है और जरा सी असावधानी से सारे फल फंफूद से ग्रस्त हो जाते हैं। बरसात में इस फंफूद को रोकना और कठिन हो जाता है। ऐसी स्थिति में जामुन के उत्पाद बनाने के लिए भी लोग आकर्षित हुए हैं। कई उद्यमी इस दिशा में अग्रसर है क्योंकि जामुन के बहुत से उत्तम कोटि के संवर्धित पदार्थ बनाने में सफलता मिल चुकी है। केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान ने भी कई उत्पाद बनाकर उनकी लोकप्रियता बढ़ाई है।
जामुन की किस्में सीआईएसएच-जामवंत और सीआईएसएच जामुन-42 दोनों ही लोकप्रिय होते जा रहे हैं। किसान हजारों पौधों की मांग कर रहे हैं। सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं राजस्थान, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र एवं तमिलनाडु से निरंतर संपर्क करते हैं। कलमी पौधों की बढ़ती हुई मांग के अनुसार इतनी अधिक संख्या में पौधे बनाना कठिन है। तब भी, जितना बन पड़ता है, पौधे तैयार किये जा रहे हैं।