पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना किसान दिनों एक कीट से बहुत परेशान हैं। किसान आम बोलचाल की भाषा में इसे सुंडी कहते हैं, कृषि अधिकारी और वैज्ञानिक टॉप बोरर (चोटी भेदक) कहते हैं। गन्ने के इस प्रमुख कीट के प्रकोप हरियाणा और पंजाब की अपेक्षा पश्चिमी यूपी में ज्यादा है। कीट से हो रहे नुकसान को देखते हुए प्रदेश के गन्ना विभाग और यूपी गन्ना शोध परिषद ने किसानों के लिए एडवाइजरी जारी की है।
पिछले 3-4 वर्षों से गर्मी ज्यादा होने लगी है। बरसात का क्रम बदला है। इस बदलाव के चलते कीट पतंगों ने अपना जीवन चक्र बदल लिया है। जैसे टॉप बोरर हर साल गन्ने में लगता था, लेकिन ये मई-जुलाई में आता था, इस बार ये फरवरी में सक्रिय होने लगा था, क्योंकि इस बार तापमान ज्यादा होने लगा था। ये कीट नमी में ज्यादा पनपता है। पिछले साल अक्टूबर तक बारिश और बाढ़ का मौसम का था, ऐसे में कीट ने अपने अनकूल वातावरण में तेजी से विकास किया।”
उत्तर प्रदेश में सालाना औसतन 25-28 लाख हेक्टेयर के बीच गन्ने की खेती होती है और सालाना करीब 100-110 लाख टन के करीब चीनी का उत्पादन होता है। उत्तर भारत खासकर उत्तर प्रदेश में बहुतायत से उगाई जाने वाली गन्ने की प्रजाति सीओ-0238 है, गन्ना प्रजनन संस्थान के मुताबिक ये किस्म लाल सड़न और चोटी भेदक (टॉप बोरर) के प्रति संवेदनशील होती है।
गन्ना वैज्ञानिकों के मुताबिक पत्तों पर अंडों से जीवन शुरू कर ये कीट पत्ती के सहारे ही गन्ने के अंदर प्रवेश कर जाता है और गन्ने को रोगग्रस्त कर देता है। उसकी बढ़वार रुक जाती है। ये अगर कीट गन्ने में गया वो फरवरी तक अंदर रह सकता है और फसल कटाई के बाद नए अंकुर आने या रैटून (गन्ने की दूसरी पीढ़ी) को संक्रमित करता है।
विषय विशेषज्ञों ने किसानों को सलाह दी गई है कि रासायनिक कीट नियंत्रण के अंतर्गत किसान अप्रैल के अंतिम सप्ताह अथवा मई के पहले सप्ताह में क्लोरेंट्रानिलिप्रोल (कोराजिन) 18.5 एस.सी. का 375 मिलीमीटर की मात्रा 1000 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से जड़ों के पास ड्रैन्चिंग करने के बाद सिंचाई कर दें। किसान यांत्रिक, रासायनिक के अलावा जैविक कीटनाशकों के जरिए भी कीट नियंत्रण कर सकते हैं।