घाटी में चेरी और बादाम की फ़सल पर बुरा असर पड़ा है। किसानों की साठ फीसदी फसल बर्बाद हो गई है। किसान केन्द्र सरकार से लगातार मदद की गुहार लगा रहे हैं। करीब दस साल बाद हो रहे जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में मौसम से हुई बर्बादी भी एक बड़ा मुद्दा है।
मिली जानकारी अनुसार चेरी का उत्पादन जिन क्षेत्रों में होता है, उनमें चुंट वलीवार, गुलाबपोरा, लार, गुटलीबाग, वाकुरा, डाब, बटविना और कंगन के कुछ क्षेत्र शामिल हैं। चेरी की किस्मों में अव्वल नंबर, डबल, मिश्री और मखमली शामिल हैं जिन्हें दूसरे राज्यों में निर्यात किया जाता है, लेकिन उत्पादकों का बाजार से निपटने पर कोई सीधा नियंत्रण नहीं है।
इन उत्पादकों द्वारा पेड़ों से फलों को तोड़कर, उन्हें पैक करके, उन्हें मजदूरी पर रखकर, पास की फल मंडी, जाजना में बेचा जाता है। उत्पादकों को आशंका है कि पिछले साल की तुलना में कीमतों में 60 प्रतिशत तक की गिरावट के कारण उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है।
इन उत्पादकों द्वारा पेड़ों से फलों को तोड़कर, उन्हें पैक करके, उन्हें मजदूरी पर रखकर, पास की फल मंडी, जाजना में बेचा जाता है। उत्पादकों को आशंका है कि पिछले साल की तुलना में कीमतों में 60 प्रतिशत तक की गिरावट के कारण उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है।
सदार और स्वादिष्ट लाल चेरी किस्मों के लिए मशहूर गंदेरबल जिले में चेरी के कम दामों ने बागवानों को निराश कर दिया है। सूबे में सरकार है नहीं और चुनाव आचार संहिता लागू होने से केन्द्र सरकार भी किसानों की मदद करने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है।
कश्मीर में चेरी के कुल उत्पादन का 60 प्रतिशत उत्पादन करने वाला यह शीर्ष चेरी उत्पादक जिला लगभग 1200 हेक्टेयर भूमि पर इसकी खेती करता है।
एक मोटे अनुमान के अनुसार लगभग 5000 उत्पादक इस व्यापार से जुड़े हुए हैं।