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मेंहदी की खेती : हर तरह की जमीन में एक बार उगाने के बाद 60 साल आमदनी

मेहंदी सिर्फ बालों और हाथों में लगाने वाली चीज नहीं है। इसके पत्तों, फूलों, बीजों और छाल में इतने औषधीय गुण मौजूद हैं कि इनका कई बीमारियों के इलाज में प्रयोग होता है। हालांकि, इसकी ज्यादातर खपत बालों और हाथों में लगाने के लिए होती है। मेहंदी की खेती देश के कई राज्यों में खूब होती है। लेकिन इसकी खेती करने वाले किसानों की संख्या बेहद कम है।

मेहंदी की मांग बाजार में पूरे साल रहती है। सबसे बड़ी बात कि से आप इसे सीधे ग्राहक को नहीं बल्कि बड़ी-बड़ी कंपनियों को बेचते हैं, जिसकी वजह से किसानों को अच्छी रकम मिलती है। भारत में पैदा और निर्यात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बीते पांच सालों में करीब 511 करोड रुपए की मेहंदी भारत से विदेश निर्यात की गई थी।

अगर आप मेहंदी की खेती करना चाहते हैं तो आपको बारिश से पहले ही खेत में मेड़बंदी कर देना चाहिए, ताकि इसमें बारिश का पानी संरक्षण हो सके। इसके बाद खेत के अंदर मौजूद तमाम खरपतवार को उखाड़ कर फेंक दें और थोड़ी गहरी जुताई करें। इसके बाद जब बारिश शुरू हो तो कल्टीवेटर से खेत में जुताई करने के बाद पाटा चला कर इसे समतल कर लें और फिर इसमें मेहंदी की रोपाई करें। मेहंदी की बुआई का सबसे सटीक समय फरवरी और मार्च के महीने में होता है आप इसे सीधे बीजों द्वारा या इसके पौधे लगाकर खेती शुरू कर सकते हैं।

मेहंदी की खेती के लिए सबसे पहले आपको ऐसी जमीन का चयन करना होगा जो बलुई दोमट मिट्टी वाली हो। हालांकि, इसकी खेती पथरीली, लवणीय, क्षारीय हर तरह की भूमि पर हो जाती है। लेकिन अच्छी फसल उगाने के लिए आपको ऐसी जमीन की तलाश करनी चाहिए जहां के मिट्टी का पीएच मान 7.5 से 8.5 तक हो. दरअसल, मेहंदी का पौधा शुष्क और उष्णकटिबंधीय के साथ-साथ सामान्य गर्म जलवायु में भी अच्छी तरह से बढ़ती है।

मेहंदी के पत्तों, छाल, फल और बीजों का उपयोग अनेक दवाईयों में होता है। ये कफ़ और पित्तनाशक होती है। इसके फलों से नींद, बुखार, दस्त और रक़्त प्रवाह से जुड़ी दवाईयाँ बनती हैं तो पत्तियों और फूलों से तैयार लेप का कुष्ठ रोग में इस्तेमाल होता है। सिरदर्द और पीलिया के मामले में भी मेहंदी की पत्तियों का रस इस्तेमाल होता है। मेहंदी में लासोन 2-हाइड्रॉक्सी, 1-4 नाप्य विनोन, रेजिन, टेनिन गौलिक एसिड, ग्लूकोज, वसा, म्यूसीलेज और क्विनोन आदि तत्व पाये जाते हैं। पुराने समय ही गर्मियों में लू और धाप-ताप से हाथ-पैरों को सुरक्षा प्रदान करने के लिये मेंहदी (Henna) लगाई जाती रही है ।

मेहंदी की खेती को व्यावसायिक फसल का दर्ज़ा हासिल है। राजस्थान के पाली को मेंहदी का हब माना जाता है । जहां दुनिया की सबसे मशहूर ‘सोजत की मेहंदी’की खेती, प्रोसेसिंग और पैकेजिंग के बाद देश-विदेश में निर्यात किया जाता है । इसके अलावा मेहंदी की खेती देश के कई राज्यों में इसकी ठीक-ठाक खेती होती है ।

मेंहदी एक झाड़ीदार पौधा होता है, जो दिखने में तो चाय की तरह होता है, इसकी शाखाएँ काँटेदार, पत्तियाँ गहरे हरे रंग वाली और नुकीली होती हैं। इसके सफ़ेद फूल गुच्छों में खिलते हैं और उनके कई बीज होते हैं। एक बार मेहंदी लगाने के बाद कई साल तक इसकी फसल मिलती है। कम पानी वाले इलाकों में मेंहदी के झाड़ीदार पौधे खूब पनपते हैं । भारत में राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ में मेंहदी की खेती के लिये सही मिट्टी और जलवायु होती है, हालांकि अभी भारत के कुल मेंहदी उत्पादन का 90% अकेले राजस्थान में ही उगाया जा रहा है।

मेहंदी का पौधा शुष्क और उष्णकटिबंधीय हर तरह की जलवायु में अच्छी तरह विकास करता है । कम वर्षा वाले इलाकों से लेकर अधिक वर्षा वाले इलाकों में 30 से 40 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान के बीच इसका अच्छी गुणवत्ता वाली पैदावार ले सकते हैं ।

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