तेलंगाना के ‘तंदूर की लाल चना’ दाल को जीआई टैग मिला है| राज्य के 4 जिलों के 63,000 किसान ‘तंदूर लाल चना’ की 4.75 लाख क्विंटल उपज पैदा कर रहे हैं| अब तेलंगाना के पास 16 उत्पादको जीआई टैग प्राप्त हैं|
तंदूर लाल चना अरहर की एक स्थानीय किस्म है, जो राज्य के तंदूर और नजदीकी इलाकों में प्रमुख रूप से उगाई जाती है| एक्सपर्ट्स की मानें तो तंदूर क्षेत्र में इसकी खेती करने का खास कारण है कि यहां की गहरी काली मिट्टी और इसमें मौजूद कई खनिज पदार्थ. साथ ही, विशाल चूना पत्थर का भंडार भी तंदूर की लाल दाल को खास बनाता है|
इस दाल में प्रोटीन की 24% मात्रा है, जो आम दाल के प्रोटीन से 3 गुना ज्यादा है| ‘तंदूर की लाल चना’ दाल की जीआई टैग मिलने पर सबसे बड़ा फायदा ये होगा अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में प्रसंस्कृत लाल दाल यानी तुर दाल की मांग बढ़ेगी और किसानों को भी बेहतर उत्पादन लेने और अच्छा पैसा कमाने का मौका मिलेगा|
भौगोलिक संकेत यानी जीआई टैग प्राप्त करने वाली लाल चना दाल की खेती तंदूर और इसके आस-पास के इलाकों में ही की जाती है| ये अच्छी बारिश वाला इलाका और यहां कि मिट्टी में कुछ ऐसे खनिज मौजूद हैं, जो इस साल के स्वाद और इसकी क्वालिटी को बाकी दालों से काफी अलग बनाते हैं|
इन दिनों तेलंगाना के 4 जिलों- विकाराबाद, नारायणपेट, सांगा रेड्डी और आदिलाबाद के 1.74 लाख हेक्टेयर यानी 50% रकबे में इस दाल को उगाया जा रहा है, लेकिन इसका इतिहास 3500 साल पुराना है| ये दाल पूरे एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में भी मशहूर है| भारत में समेत ज्यादा दक्षिण एशियाई देशों में इस लाल दाल की काफी मांग और खपत है|
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो तेलंगाना के यलाल फार्मर्स प्रोड्यूसर्स कंपनी लिमिटेड (FPO) ने जीआई आवेदन संख्या 706 के साथ 24 सितंबर, 2020 को दायर किया था, जिसके बाद आज इस दाल को सफलता मिल गई है| वैसे तो सभी दालों को प्रोटीन और पोषक तत्वों की खान मानते हैं, लेकिन तेलंगाना के तंदूर की लाल चना दाल कुछ खास है|
इसमें साधारण दाल से 3 गुना ज्यादा यानी 24% प्रोटीन पाया जाता है| यही वजह है कि देश की शाकाहारी आबादी में इस दाल की काफी मांग है| ये लाल दाल अमीनो एसिड, लाइसिन, राइबोफ्लेविन, थायमिन, नियासिन का भी आयरन मेन सोर्स है| इन सभी गुणों ने ही तंदूर की लाल चना दाल को जीआई टैग प्राप्त करने में मदद की है|