भारत में अपना पहला औद्योगिक डिज़ाइन ग्रांट प्राप्त किया है। यह ग्रांट उसके वैज्ञानिकों द्वारा विकसित सोलर-पावर्ड जलकुंभी हार्वेस्टर के लिए दिया गया है। यह हार्वेस्टर सरल, किफायती और अर्ध-कुशल या अकुशल व्यक्तियों द्वारा भी आसानी से संचालित किया जा सकता है।
इक्रीसेट द्वारा इन-हाउस डिज़ाइन और निर्मित यह सौर ऊर्जा संचालित उपकरण मात्र ₹2,00,000 से कम लागत में उपलब्ध है, जो ग्रामीण कृषि समुदायों के लिए आदर्श है। इसकी कीमत उन्नत मशीनों की तुलना में 10 गुना कम है। यह उपकरण लागत, समय और श्रम में 50–60% तक की बचत करता है और स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग को प्राथमिकता देता है।
ग्रामीण तालाबों में जलकुंभी की अधिकता से पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है, मत्स्य पालन को नुकसान होता है, और नहरों में अवरोध उत्पन्न होता है। यह तेजी से फैलने वाला पौधा अपने बीजों के कारण लंबे समय तक जीवित रहता है। केवल 8–10 पौधे 6–8 महीनों में 6 लाख से अधिक पौधों में बदल सकते हैं।
रासायनिक और जैविक विधियों से जलकुंभी हटाने में काफी खर्च होता है और ये केवल अल्पकालिक समाधान प्रदान करते हैं। जलकुंभी पर स्थायी नियंत्रण पाने का एकमात्र तरीका इसका नियमित रूप से मैनुअल या यांत्रिक कटाई है।
इक्रीसेट का यह हार्वेस्टर “वेस्ट टू वेल्थ” परियोजना का हिस्सा है, जिसे ओडिशा सरकार के कृषि और किसान सशक्तिकरण विभाग के समर्थन से विकसित किया गया है। इस परियोजना का उद्देश्य जलकुंभी बायोमास का एरोबिक कंपोस्टिंग के माध्यम से स्थायी उपयोग करना है।
इक्रीसेट के अनुसंधान कार्यक्रम निदेशक डॉ. एम.एल. जाट ने कहा, “हमारे प्रयोगों से पता चला कि यह हार्वेस्टर मात्र 2-3 दिनों में 3 एकड़ (1.2 हेक्टेयर) तालाब से 72,000 किलोग्राम बायोमास हटा सकता है। वहीं, मैनुअल कटाई में 10–20 मजदूरों को 18–20 दिन लगते हैं।”
हार्वेस्टर से प्राप्त बायोमास को स्थानीय स्तर पर प्रोसेस करना आवश्यक है।
डॉ. अरविंद कुमार पाढ़ी, प्रमुख सचिव, कृषि एवं किसान सशक्तिकरण विभाग, ओडिशा सरकार ने कहा, “महिला स्वयं सहायता समूह (SHGs) बायोमास को कंपोस्ट, मछली चारे या हस्तनिर्मित कागज में बदलने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। यह महिला-प्रमुख उद्यम वैकल्पिक आजीविका के साथ-साथ आंतरिक मत्स्य पालन को बढ़ावा दे सकते हैं, जिससे सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव बढ़ेंगे।”